Book Title: Visuddhimaggo Part 01
Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
Publisher: Bauddh Bharti

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Page 303
________________ २५० विसुद्धिमग्ग काळो वा सेतो वा, दीघो वा परिमण्डलो वा ति ववत्थपेतब्बो। ततो इमस्मि नाम ओकासे 'अयं वम्मिको इदं असुभनिमित्तं' ति सालक्खेतब्बं । सचे रुक्खो होति, सो पि अस्सत्थो वा निग्रोधो वा कच्छको वा कपीतनो वा उच्चो वा नीचो वा, खुद्दको वा महन्तो वा, तम्बो वा काळो वा सेतो वा ति ववत्थपेतब्बो। ततो इमस्मि नाम ओकासे 'अयं रुक्खो इदं असुभनिमित्तं' ति सल्लक्खेतब्बं । सचे गच्छो होति, सो पि सिन्दि वा करमन्दो वा कणवीरो वा कुरण्डको वा उच्चो वा नीचो वा, खुद्दको वा महन्तो वा ति ववत्थपेतब्बो। ततो इमस्मि नाम ओकासे 'अयं गच्छो' इदं असुभनिमित्तं ति सल्लक्खेतब्बं । सचे लता होति, सा पि लाबु वा कुम्भण्डो वा सामा वा काळवल्लि वा पूतिलता वा ति ववत्थपेतब्बा। ततो इमस्मिं नाम ओकासे 'अयं लता इदं असुभनिमित्तं, इदं असुभनिमित्तं' अयं लता ति सल्लक्खेतब्बं । १९. यं पन वृत्तं 'सनिमित्तं करोति सारम्मणं, करोती' ति, तं इधेव अन्तोगधं। पुन-प्पुनं ववत्थपेन्तो हि सनिमित्तं करोति नाम। अयं पासाणो इदं असुभनिमित्तं', 'इदं असुभनिमित्तं अयं पासाणो' ति एवं वे वे समासेत्वा समासेत्वा ववत्थपेन्तो सारम्मणं करोति नाम। एवं सनिमित्तं सारम्मणं च कत्वा पन सभावभावतो ववत्थपेती ति वुत्तत्ता य्वास्स सभावभावो अनजसाधारणो अत्तनियो उद्धमातकभावो, तेन मनसिकातब्बं । वणितं उद्धमातकं ति एवं सरसेन ववत्थपेतब्बं ति अत्थो। या काली या सफेद, लम्बी है या गोल-इसका विचार करना चाहिये। तब "इस स्थान पर यह दीमक की बाँबी है, यह अशुभनिमित्त है"-इस प्रकार निरीक्षण करना चाहिये। यदि वृक्ष हो, तो वह भी अश्वत्थ (=पीपल) है या न्यग्रोध (बरगद), कच्छक (=पाकड़) है या कपित्थ (=कैथ), ऊँचा है या नीचा, छोटा है या बड़ा, ताँबे के रंग का है, काला है या सफेद-इस प्रकार विचार करना चाहिये। तब "इस स्थान पर यह वृक्ष है, यह अशुभनिमित्त है"-इस प्रकार निरीक्षण करना चाहिये। ___ यदि झाड़ी है, तो वह भी छोटी खजूर है या कमन्द (-करवन), करवीर है या कुरण्डक (=जयन्ती), ऊँची है या नीची, छोटी है या बड़ी-इस प्रकार विचार करना चाहिये । तब "इस स्थान पर यह झाड़ी है-यह अशुभनिमित्त है, या झाड़ी"-इस प्रकार निरीक्षण करना चाहिये। यदि लता हो, तो वह भी लौकी है या कुम्हड़ा, श्यामा है या कालवल्ली या पूतिलता (=गिलोय)-इस प्रकार विचार करना चाहिये। तब "इस स्थान पर यह लता है, यह अशुभनिमित्त है; यह अशुभ निमित्त है, यह लता है"-इस प्रकार निरीक्षण करना चाहिये। १९.जो कहा गया है- सनिमितं करोति, सारम्मणं करोति (निमित्त के साथ (ग्रहण) करता है, आलम्बन के साथ ग्रहण करता है) उसका यहीं (उपर्युक्त वर्णन में ही) समावेश हो जाता है, क्योंकि जब वह बारम्बार विचार करता है, तब वह आसपास की वस्तुओं को निमित्त के साथ ग्रहण करता है। वैसे ही,"यह पत्थर है, यह अशुभनिमित्त है, यह अशुभनिमित्त है, यह पत्थर है" इस प्रकार दो-दो को जोड़कर विचार करते हुए वस्तुतः वह आलम्बन के साथ उन्हें ग्रहण करता है। निमित्त के साथ, आलम्बन का साथ ग्रहण करने के बाद, क्योंकि कहा गया है कि समावभावतो ववत्थति "स्वभाव के अनुसार विचार करता है" अतः जो इस उदुमातक का स्वभाव

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