Book Title: Visuddhimaggo Part 01
Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
Publisher: Bauddh Bharti

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Page 321
________________ विशुद्धिमग्ग तस्मा दब्बजातिकेन भिक्खुना जीवमानसरीरं वा होतुं मतसरीरं वा, यत्थ यत्थ असुभाकारो पञ्ञायति, तत्थ तथेव निमित्तं गहेत्वा कम्मट्ठानं अप्पनं पापेतब्बं ति ॥ २६८ · इति साधुजनपामोज्जत्थाय कते विसुद्धिमग्गे समाधिभावनाधिकारे असुभकम्मट्ठाननिद्देसो नाम छट्टो परिच्छेदो ॥ इसलिये उत्तर (श्रेष्ठ) मनुष्य धर्म को प्राप्त करने की योग्यता रखने वाले बुद्धिमान् भिक्षु को, चाहे जीवित शरीर हो या मृत शरीर, जहाँ भी अशुभ की प्रतीति हो वहाँ वैसा ही निमित्त ग्रहण कर कर्मस्थान को अर्पणा तक पहुँचाना चाहिये ।। साधुजनों के प्रमोद हेतु विरचित विसुद्धिमग्ग के समाधिभावनाधिकार में अशुभकर्मस्थाननिर्देश नामक षठ परिच्छेद समाप्त ॥

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