Book Title: Visuddhimaggo Part 01
Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
Publisher: Bauddh Bharti

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Page 302
________________ ६. असुभकम्मट्ठाननिद्देस २४९ कस्मिहि दिसाभागे ठितस्स आरम्मणं च न विभूतं हुत्वा खायति, चित्तं च न कम्मनियं होति । तस्मा तं वज्जेत्वा यत्थ ठितस्स आरम्मणं च विभूतं हुत्वा खायति, चित्तं च कम्मनियं होति, तत्थ ठातब्बं । पटिवातानुवातं च पहातब्बं । पटिवाते ठितस्स हि कुणपगन्धेन उब्बाळ्हस्स चित्तं विधावति । अनुवाते ठितस्स सचे तत्थ अधिवत्था अमनुस्सा होन्ति, ते कुज्झित्वा अनत्थं करोन्ति । तस्मा ईसकं उक्कम्म नातिअनुवाते ठातब्बं । एवं तिट्ठमानेनापि नातिदूरे नाच्चासन्ने नानुपादं नानुसीसं ठातब्बं । अतिदूरे ठितस्स हि आरम्म अविभूतं होति । अच्चासन्ने भयं उप्पज्जति । अनुपादं वा अनुसीसं वा ठितस्स सब्बं असुभं समं न पञ्ञायति । तस्मा नातिदूरे नाच्चासने ओलोकेन्तस्स फाकट्ठाने सरीर-वेमज्झभागे ठातब्बं । । १८. एवं ठितेन " तस्मि पदेसे पासाणं वा ....पे..... लतं वा सनिमित्तं करोती" ति एवं वृत्तानि समन्ता निमित्तानि उपलक्खेतब्बानि । तत्रिदं उपलक्खणविधानं - सचे तस्स निमित्तस्स समन्ता चक्खुपथे पासाणो होति, सो अयं पासाणो उच्चो वा नीचो वा, खुद्दको वा महन्तो वा, तम्बो वा काळो वा सेतो वा दीघो वा परिमण्डलो वा ति ववत्थपेतब्बो । ततो इमस्मि नाम ओकासे अयं पासाणो इदं असुभनिमित्तं इदं असुभनिमित्तं अयं पासाणो ति सल्लक्खेतब्बं । सचे वम्मको होति, सो पि उच्चो वा नीचो वा, खुद्दको वा महन्तो वा, तम्बो वा अवलोकनविषयक नियम १७. इस प्रकार जाने पर भी जाते ही अशुभनिमित्त का अवलोकन नहीं करना चा हेये; क्योंकि किसी-किसी दिशा में खड़े होने पर आलम्बन स्पष्ट रूप से दिखायी नहीं देता और चित्त भी वश में नहीं रहता । अतः उसे ऐसे स्थान से बचते हुए, जहाँ खड़े होने से आलम्बन भी स्पष्ट रूप से दिखायी दे और चित्त भी वश में रहे, वहाँ खड़ा होना चाहिये। हवा के रुख के प्रतिकूल या हवा के रुख के अनुकूल रहने से बचना चाहिये। हवा के रुख के प्रतिकूल खड़े हुए भिक्षु का चित्त दुर्गन्ध से उद्वेलित होकर इधर-उधर दौड़ता है। यदि उस शव पर अमनुष्य वास करते हों तो वे हवा के रुख के अनुकूल खड़े हुए भिक्षु पर कुपित होकर अनर्थ (= उत्पात) कर सकते हैं। इसलिये थोड़ा सा हटकर, न कि ठीक हवा के रुख के अनुकूल, खड़ा होना चाहिये । इस प्रकार खड़े होते हुए भी (उसे अन्य बातों का भी ध्यान रखना चाहिये; जैसे-शव से) न बहुत दूर, बहुत पास, न पैर या सिर की ओर खड़ा होना चाहिये। बहुत दूर खड़े होने पर आलम्बन स्पष्ट नहीं होता । बहुत पास खड़े होने से भय उत्पन्न होता है। पैर या सिर की ओर खड़े होने पर समस्त अशुभ (= मृत शरीर) एक बराबर, समान दिखायी नहीं देता। इसलिये न बहुत दूर, न बहुत पास, सुविधाजनक स्थान में शरीर के मध्य भाग की ओर खड़ा होना चाहिये। १८. यों खड़े हुए भिक्षु को "उस प्रदेश में पत्थर या पूर्ववत् लता को निमित्त के साथ ग्रहण करता है" - इस प्रकार बतलाये गये चारों ओर के निमित्तों को ध्यान से देखना चाहिये ।. वहाँ ध्यान से देखने की विधि यह है - "यदि उस निमित्त के पास दृष्टिपथ में पत्थर हो तो उस पर विचार करना चाहिये कि वह पत्थर ऊँचा है या नीचा, छोटा है या बड़ा, ताँबे के रंग का है, काला है या सफेद है, लम्बा है या गोल है। तब इस प्रकार निरीक्षण करना चाहिये - "इस स्थान पर यह पत्थर है यह अशुभनिमित्त है; यह अशुभनिमित्त है यह पत्थर है ।" यदि दीमक की बाँबी हो तो वह भी ऊँची है या नीची, छोटी है या बड़ी, ताँबे के रंग की है

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