Book Title: Visuddhimaggo Part 01
Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay
Publisher: Bauddh Bharti

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Page 295
________________ २४२ विसुद्धिमग्ग नियामसङ्घातं सम्मत्तसङ्घातं च अरियमग्गं ओक्कमितुं अभब्बा ति अत्थो। न केवलं च कसिणे येव, अओसु पि कम्मट्ठानेसु एतेसं एकस्स पि भावना न इज्झति। तस्मा विगतविपाकावरणेन पि कुलपुत्तेन कम्मावरणं च किलेसावरणं च आरका परिवजेत्वा सद्धम्मस्सवनसप्पुरिसूपनिस्सयादीहि सद्धं च छन्दं च पलं च वड्वेत्वा कम्मट्ठानानुयोगे योगो करणीयो ति॥ इति साधुजनपामोजत्थाय कते विसुद्धिमग्गे समाधिभावनाधिकारे सेसकसिणनिदेसोनाम पञ्चमो परिच्छेदो॥ सम्मतं- कुशलं धर्मों की ओर ले जाने वाली श्रेयस्कर मार्ग की प्राप्ति के अयोग्य कुशल धर्मों (अवध धर्मा, सुखविपाक फल देने वाले धर्मों) के प्रति श्रेयस्कर मार्ग नामक आर्यमार्ग की प्राप्ति के अयोग्य-यह अर्थ है। एवं इन (व्यक्तियों) में से किसी एक की भी न केवल कसिण-में, अपितु अन्य कर्मस्थानों में भी भावना सिद्ध नहीं होती। इसलिये विपाकावरण से रहित होने पर भी कुलपुत्र को कर्मावरण और क्लेशावरण का दूर से ही परित्याग करके सद्धर्मश्रवण एवं सत्पुरुष के आश्रय आदि द्वारा श्रद्धा, छन्द और प्रज्ञा की वृद्धि कर कर्मस्थान के अनुयोग में लगना चाहिये।। साधुजनों के प्रमोदहेतु विरचित विशुद्धिमार्ग ग्रन्थ के . समानाधिभावनाधिकार में शेषकसिणनिर्देश नामक नामक पचम परिच्छेद समास॥

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