Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala
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प्राक्कथन
संस्कृत महाकाव्यों का प्रणयन रामायण, महाभारत से माना गया है। तत्पश्चात् यह प्रभाव कालिदास, श्रीहर्ष आदि कवियों में देखा जाता है । ईसा की द्वितीय शताब्दी के प्रथम संस्कृत जैनकवि जैनाचार्य समन्तभद्र हुए हैं। इसी परमपरा में बीसवीं शताब्दी में आचार्य ज्ञानसागर ने अनेक जैन महाकाव्यों की रचना की है। उन्होंने संस्कृत वाङ्मय का तथा जैनधर्म, जैनदर्शन का विधिवत् अनुशीलन - परिशीलन कर आत्म-साधना के साथ-साथ साहित्य - साधना भी अनवरत की है, जिसके फलस्वरूप मानवसमाज को जयोदय, वीरोदय, सुदर्शनोदय, भद्रोदय, महाकाव्य समुद्रचरित एवं दयोदय चम्पू जैसे काव्य संस्कृत भाषा में उपलब्ध हुए हैं और हिन्दी में भी उनकी अनेक रचनाएँ प्राप्त हैं। जन-जन के नायक भगवान महावीर के समग्र जीवन-दर्शन को आत्मसात् करने का बहुआयामी पुरुषार्थ उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का व्रत लेकर प्रारम्भ किया । ऐसे 20वीं शताब्दी के महामना स्वनामधन्य ब्र. भूरामल ने मरूधरा राणोली की उर्वरा भूमि में अपनी पर्याय सार्थक करते हुए ज्ञानसागर के रूप में पंचमहाव्रतों को निष्ठापूर्वक अंगीकार कर स्व-कल्याण के साथ-साथ समग्र मानव-समाज के कल्याणार्थ अनुपम काव्य विधा दी । उन्हीं में से एक वीरोदय महाकाव्य है ।
आचार्यश्री ज्ञानसागर ने वीरोदय महाकाव्य में महावीर जैसे सर्वश्रेष्ठ महापुरूष को अपनी कथा का नायक चुना है, जिनका चरित उत्तरोत्तर चमत्कारी है। 22 सर्गों में निबद्ध इस महाकाव्य में कवि ने भगवान महावीर के चरित को लोककल्याण की भावना से चित्रित किया है । ग्रन्थ में कुण्डनपुर नगर का प्राकृतिक सौन्दर्य-वर्णन, ऋतु-वर्णन और राजा सिद्धार्थ तथा रानी प्रियकारिणी के अनुपम वात्सल्य को भी यथास्थान दर्शाया है।
प्रस्तुत "वीरोदय महाकाव्य और भगवान महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन" नामक शोध-प्रबन्ध को छह अध्यायों में