Book Title: Viroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Author(s): Kamini Jain
Publisher: Bhagwan Rushabhdev Granthmala

Previous | Next

Page 11
________________ (iv) चन्द्र सदा अपनी शान्तिमयी शीतल रश्मियों से सन्तप्त विश्व की पीड़ा हरेगा और आन्दोद्योत का वितान करेगा। परमपूज्य मुनिपुंगवश्री, जिनकी कृपा-कोर से श्रमण संस्कृति के दुर्लभ-उत्कर्ष की आशाएँ बलवती हुयी हैं, के प्रति सश्रद्ध त्रिकाल नमोऽस्तु। जिनवाणी माँ का लघु शिशु प्राचार्य अरुणकुमार जैन जैनदर्शन-व्याकरणाचार्य, एम.ए. आदि निदेशक आ.ज्ञा.वा.वि. केन्द्र, ब्यावर

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 376