Book Title: Veerstuti
Author(s): Kshemchandra Shravak
Publisher: Mahavir Jain Sangh

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Page 17
________________ वीरस्तुति नामकी पुस्तक देखी, लेखक मुनिश्रीने अत्यन्त परिश्रमसे तैयार कर जन समाजपर उपकार किया है। तीर्थंकरोंकी स्तुति करना आत्माको पवित्र बनाना है। तीर्थंकरोंकी स्तुतिकरते हुवे उच्चकोटिकीभावना जाय तो तीर्थकर जैसी आत्मा वनजाती हैं। अत. जन समाजको सम्मति देता हूं कि वीरप्रभुकी स्तुति हमेशा पढा करें। जैनाचार्य पूज्यश्री खूबचन्द्रजी महाराजका सम्प्रदायानुयायी-आर्य जैन मुनि हीरालाल २६-८-३९,अंवाला शहर , साहित्याकाशभ्रमणभानु पुप्फभिक्छ रचित संस्कृत और हिन्दी भाषामें वीरस्तुतिका दर्शन किया। आपने इस उम्नतिके युगमें इस प्रकार लेखनी उठाकर जैन ससार पर ही क्या वल्के भव्यसाक्षरसृष्टिका कल्याण कार्य किया है। यह रचना रोचक और हृदयङ्गम है, मानवके आन्तरिक विचार इसका स्वाध्याय करते करते भक्तिसागरमें लहरायमान होने लगते हैं। वीरस्तुतिके विषयमें मेरा इतना ही कहना वस है कि इसका सम्पादन विज्ञानके युगमे वैज्ञानिक ढंगसे किया गया है, अतः स्थानकवासी जैनसमाजके लिये यह वडे गौरवकी वस्तु है। जैन समाजके मुनि धार्मिक प्रन्थ शास्त्र अथवा अन्यान्य प्रन्योंपर टीका रचना कुछ भूलसे गये थे। लोकाशाहके अनन्तर खतन्त्र साहित्य विकासका उत्सर्जन रुकसा गया था परन्तु पुप्फ भिक्खुने वीरस्तुतिके प्रभावसे उस कमीकी पूर्ति कर दी। हे पुप्फभिक्खु ! साधुवाद ! 'शासन प्रेमी-धनचन्द्र भिक्खु ता० २८-८-३९, इंदौर (मध्यभारत) । अयि, असीमशेमुषिमुषितदोषाः | अर्जितविद्याकोषा. ! धियाधीताध्याताशेपजैनमुनिप्रवरा ! विदितमस्तु अत्र भवता श्रीमता, यन्मुनि पुगवेन श्रीफूलचन्द्रेण रचितं ममा क्रन्दनकं काव्य मया सम्यक्समवलोकि, यनिश्चितं स्वखान्ते यदेतत्काव्यं शिक्षयति जैनमुनीन् यदीदृशेन गुरुणा भाव्यं तदृक्षेण च शिष्येण । ये हि मुनय पूर्वमपरीक्ष्यैव शिष्यान्दीक्षयन्ति तेऽचिरादेव विकृति प्रयान्ति । तान् एषा मुनीन्द्ररचिता कृति सम्यगवबोधयति, ये च जिनधर्माचारप्रचरणे परित्यतनिजप्रयोजना सन्ति, तथा परस्परेामोहनिद्रया निद्रिता वर्तन्ते तेषु मातेव जागृतभावमुत्पादयतीति, नाद्यावधि केनापि जैनमुनिना खसंप्रदायपोषकमीक्षं संस्कृतकाव्यं विरचितं दृष्टिपथमवतरति । एतद्धि न्यूनतापूरकमिति मे मतिः । अहो एतत्काव्यसुधारस खादं सन्तुष्यमाणो मेऽन्तरात्मा नान्तर्माति, नूनं हि एतस्य कवित्वतत्वमनुकरोति कालीदासादीनां कविपुगवाना कविताम् । अस्मिन्सम्यगवबोधिता जैनसम्प्रदायानुसार गुरुशिष्यव्यवस्था, तस्यामपि कवित्वसौष्ठवेन हेम्नि सौरभसन्दोह उत्पादितः । नूनमेषा कृतिर्जनसम्प्रदायानुयायिभिर्मुनिभिः समादरणीया तेषु बहूपकरिष्यतीति मनुतेपण्डित-हंसराजशास्त्री, व्याकरणरता, साहित्याचार्यश्च, प्रधानाध्यापक , संस्कृतविद्यालय मलेरकोटलाराज्ये (पाचालः)

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