Book Title: Vaddhmanchariu Author(s): Vibuha Sirihar, Rajaram Jain Publisher: Bharatiya Gyanpith View full book textPage 7
________________ श्रद्धांजलि 'वड्डमाणचरिउ'की इस अन्तिम सामग्रीको प्रेसमें भेजते समय हमारा हृदय शोक-सागरमें डूबा हुआ है, क्योंकि इस ग्रन्थके मूल-प्रेरक प्रो. डॉ. आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्येका दिनांक ८-१०-७५ की रात्रिमें लगभग ९॥ बजे उनके निवासस्थल कोल्हापुरमें दुःखद निधन हो गया। इस दुर्घटनासे हम किंकर्तव्यविमूढ़ हैं। डॉ. उपाध्येने बड़े ही स्नेहपूर्वक मुझे उत्साह एवं साहस प्रदान कर उक्त ग्रन्थको तैयार करनेकी आज्ञा दी थी, हमने भी उसे अपनी शक्ति भर प्रामाणिक और सुन्दर बनानेका प्रयास किया है। उन्होंने अस्वस्थावस्थामें भी उसका General Editorial लिखा। वह 'बड्डमाणचरिउ'का ऐतिहासिक मूल्यांकन तो है ही, साथ ही मेरे लिए भी उनका वह अन्तिम आशीर्वाद और मेरो साहित्यिक-साधनाके लिए सर्वश्रेष्ठ प्रमाण पत्र है। रइधूग्रन्थावली (१६ खण्डोंमें प्रकाश्यमान ) के साथ-साथ वे विबुध-श्रीधर ग्रन्थावली ( ३ खण्डोंमें ) को भी अपने जीवन-कालमें ही प्रकाशित देखना चाहते थे। उन्होंने बड़े विश्वास-पूर्वक यह भार मुझे सौंपा था। मैं भी उनकी उस अभिलाषाको पूर्ण करनेको प्रतिज्ञा कर उन कार्यों में जुटा हुआ था, किन्तु कौन जानता था कि कलिकालका वह श्रुतधर बिना किसी पूर्व-सूचनाके अकस्मात् ही हमसे छीन लिया जायेगा। उनके वियोगमें आज जैन-विद्या तो अनाथ हो ही गयो प्राच्य-विद्याका क्षेत्र भो सूना हो गया है। अपने शोकको शब्दों में बांध पाना हमें सम्भव नहीं हो पा रहा है। काश, वे इस ग्रन्थको प्रकाशित रूपमें देख पाते। दिवंगत आत्माको हमारे शत-शत नमन । -राजाराम जैन सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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