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आचार्य बुलाते
एक
आत्मा ही का चिंतन-मनन करो
राग-द्वेष इन दो का परिहार करो
तीन रतन (रत्नत्रय) का आचरण करो
चार
आराधनाओं को आराधो
पाँच इन्द्रिय विषयों का त्याग करो
विषय-कषायों से अब बस हो
मोक्षमार्ग पर ही चलने की प्रतिज्ञा करो
संसार में मुट्ठी बाँधकर आये हो
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हाथ पसारकर
जाना है
हस्तशिक्षा
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इधर यात्री जरा सुनो
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यह तुम्हारे लिए आत्महित का उत्तम अवसर है
समय बड़ी तेजी से बीता जा रहा है
बहुत काल तो बीता
थोड़ी ही आयु बची है
अब तो मोक्षमार्ग
का पुरुषार्थ करो
प्राणिमात्र के प्रति मन में बंधी हुई गांठों को खोलो
आपस में कषाय व वैमनस्य
न करो
भाईचारे की भावना रखो
मैत्री, प्रेम व वात्सल्य से चलो
आपस में सहयोग जरूरी है
थीना समय
तो उसके
लिए निकाली
तुम्हारे हाथ में दुर्लभ मनुष्य पर्याय रूपी रत्न है
वृथा राग-रंग में उसे व्यर्थ मत होने दो
और पैसा कमाना भी
मनुष्य पर्याय का सार नही
निमित्ताधीन दृष्टि छोड़कर
मोक्षमार्ग का दरवाजा खोलो
यदि खोलोगे तो भविष्य अत्यंत उज्ज्वल है
इस जीवन में फूल खिलेंगे
और आगामी अपार
एवं दुःख में भवसमुद्र से तिर जाओगे
कर्म बंधनों का नाश होकर मोक्ष प्राप्त होगा ।
जय
जिनेन्द्र देव की