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गाथा ५४
हमारा अत्यंत सौभाग्य होगा यदि आप इस त्यागी भवन में निवास करके आत्महित करेंगे।
10 हे भव्य !
अवसर बीता जा रहा है, सीघ्र ही कल्याण
कर।
वसतिका दान
ज्ञान दान
मैं ऐसा
जानता हूँ कि
जिनधर्मियों की सहायता करने वाले ऐसे पुरुषों का
नाम लेने मात्र से
मोह कर्म लज्जायमान होकर
मंद पड़ जाता है
और उनका गुणगान करने से हमारे कर्म गल जाते हैं। ।।