Book Title: Updesh Siddhant Ratanmala
Author(s): Nemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
Publisher: Swadhyaya Premi Sabha Dariyaganj

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Page 283
________________ संगति से गुण-दोषों की प्राप्ति होती है। इस दुःखमा काल में नाममात्र के धारी श्रावक तो बहुत हैं परन्तु धर्मार्थी श्रावक दुर्लभ हैं। धर्म सेवन से जिस वीतराग भाव की प्राप्ति होती है वह नामधारी धर्मात्माओं को कभी नहीं हो सकती। सुमार्गरत का मिलाप दुर्लभ है। मा आत्मवैरी की पर पे करुणा कैसे हो ! जिनवचनों के विधान का रहस्य जानकर भी जब तक आत्मा को नहीं देखा जाता तब तक श्रावकपना कैसे होगा अर्थात् जो आत्मज्ञानी नहीं उसके सच्चा श्रावकपना होता नहीं। कैसा है वह श्रावकपना-धीर पुरुषों के द्वारा आचरण किया AM W हुआ है। मोही को यथार्थ उपदेश नहीं रुचता। ola

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