Book Title: Updesh Siddhant Ratanmala
Author(s): Nemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
Publisher: Swadhyaya Premi Sabha Dariyaganj

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Page 273
________________ कई जीव तपश्चरणादि करते हैं परन्तु जिनवचन की श्रद्धा नहीं करते सो उनका समस्त आडम्बर वृथा है अतः सम्यक श्रद्धानपूर्वक क्रिया करनी योग्य प्रथम अपना श्रद्धान अवश्य ही ठीक करना। सम्यक्त्व के बिना तू महान दोषी है। सम्यक्त्व ही मृत्यु से रक्षक श्रद्धान ही मुख्य धर्म है। सम्यग्दृष्टि वंदर्नीय सम्यक्त्व से अजरअमर पद होता है। सह साधर्मी धर्मियों से प्रीति करना सम्यक्त्व का अंग है। से प्रीति नहीं तो सम्यक्त्व भी नहीं। सम्यग्दृष्टि के धर्मकार्य के समय में यदि कोई व्यापारादि कार्य आ जाये तो उसको दुःखदायी जान वह धर्म कार्य छोड़कर पाप कार्य में नहीं लगता सो यह ही सम्यग्दृष्टि का चिन्ह १६७

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