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क्रमांक
विषय ८२. मात्र वेषी दूर से ही त्याज्य है
........... ८३. जिनमार्ग में चलने वाले अमार्गी प्रशंसनीय हैं ८४. पापियों की विवेकहीन बुद्धि होती है ८५. मिथ्यात्वयुत सुख से सम्यक्त्वयुत दुःख भला है ....... ८६ दृढ़ सम्यग्दृष्टि इन्द्र द्वारा भी वंदनीय हैं ८७. मोक्षार्थी किसी कीमत पर सम्यक्त्व नहीं छोड़ता ८८ सम्यग्दर्शन ही वास्तविक वैभव है ८६. सम्यग्दृष्टि को धन से भी सार जिनपूजा है ६०. जिनपूजन और कुदेवपूजन की तुलना ६१. तत्त्वविद् की पहिचान
........... ६२. जिनाज्ञा के अनुसार धर्म करो 3. ढीठ, दष्ट चित्त और सभट कौन है ६४. गुणवान के निश्चय से मोक्ष होता ही है ६५. ऋद्धियों से उदास पुरुष ही प्रशंसनीय है ६६. पूर्वाचार्य का आभार
............ ६७. शास्त्र की निन्दा दुःखों का कारण है ६८. जिनाज्ञा के भंग से दुःखों की प्राप्ति ६६. जिनवचन-विराधक को धर्म व दया नहीं होती १००. आगम रहित क्रिया आडम्बर निंद्य है १०१. शुद्ध धर्म का दाता ही परमात्मा है १०२. अविवेकी मध्यस्थ नहीं रह सकता १०३. धर्म के मूल वीतरागी देव-गुरु- शास्त्र हैं १०४. जिनाज्ञा में रत ही हमारे धर्मार्थ गुरु हैं १०५. जिनवचनों से मंडित सब ही गुरु हैं १०६. सज्जनों की संगति की बलिहारी है १०७. गुणवान गुरुओं का सद्भाव आज भी है १०८ सुगुरु के उपदेश से भी किन्हीं के सम्यक्त्व नहीं ............६५
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