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श्री नेमिचंद जी
उपदेश सिद्धान्त
रत्नमाला
नेमिचंद भंडारी कृत
दुराग्रही उपदेश का पात्र नहीं
कुग्गहगह- गहियाणं, मुद्धो जो देइ धम्म उवएसो । सो चम्मासी कुक्कुर, वयणम्मि खवेइ कप्पूरं । ।१३।। अर्थः- खोटे आग्रह रूपी ग्राह' से ग्रहे हुए जीवों को जो मूर्ख धर्मोपदेश देता है वह चमड़ा खाने वाले कुत्ते के मुख में कपूर रखने जैसी चेष्टा करता है ।।
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भावार्थ:- जिनके तीव्र मिथ्यात्व का उदय है उन्हें जिनवाणी रुचती नहीं है, इसी प्रकार यह भी जान लेना चाहिये कि जिन्हें जिनवाणी रुचती नहीं है उनके तीव्र मिथ्यात्व का उदय चल रहा है, वृथा उपदेश क्यों देता है ! || १३ ||
जिनसूत्रभाषी व उत्सूत्रभाषी का विवेचन
रोसो वि खमाकोसो, सुत्तं भासंत जस्स धण्णस्स । उत्तेण खमा वि य, दोस महामोह आवासो ।।१४।।
१. अर्थ - मगर अथवा पिशाच ।
अर्थः- जिनसूत्र के अनुसार उपदेश देने वाले उत्तम वक्ता का रोष भी करे तो वह क्षमा का भंडार है और जो पुरुष जिनसूत्र के विरुद्ध उपदेश देता है उसकी क्षमा भी रागादि दोष तथा मिथ्यात्व का ठिकाना है ।।
११
भव्य जीव