Book Title: Updesh Siddhant Ratanmala
Author(s): Nemichand Bhandari, Bhagchand Chhajed
Publisher: Swadhyaya Premi Sabha Dariyaganj

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Page 14
________________ उससे ही ग्रंथ छपवाने का निश्चय करके उसे टाइप होने को दे दिया था पर उसके प्रूफ आने पर ग्रंथ की हस्तलिखित प्रति (ह० प्र०) नया मंदिर जी, धर्मपुरे से उपलब्ध हुई जो कि पं० भागचंद जी की ही भाषा वचनिका उनकी देशभाषा में है। इस प्रति के दो पेज की फोटोस्टेट कॉपी भी यहीं प्रारंभ में पहले दी है। यदि यह प्रति पहले उपलब्ध हो जाती तो इसी के आधार से इसके हिन्दी अनुवाद का पं० भागचंद जी की भाषा के अर्थ, भावार्थ सहित या उससे रहित का प्रकाशन करवाते पर यह बाद में मिली तो उसके अनुसार कु० कुन्दलता व आभा ने स्थान-स्थान पर कुछ शब्द व पंक्तियाँ आदि जो ज्यादा उपयुक्त जान पड़ीं वे परिवर्तित की और कहीं-कहीं ह० लि० प्रति में कुछ अतिरिक्त वाक्य व किसी-किसी गाथा की उत्थानिका आदि भी जो और थीं वे भी इसमें जोड़ दी और गाथा १२, १७ आदि कुछ गाथाओं के अर्थ में या अर्थ एवं भावार्थ दोनों में जहाँ विभिन्नता थी उसे उन्होंने ह० प्र० के ही आधार से देकर सागर प्रति के अर्थ एवं भावार्थ को टिप्पण में दिया है। इसके अतिरिक्त गाथाओं के शीर्षक भी अपनी समझ के अनुसार उन्होंने बनाए हैं और कुछ गाथाओं में टिप्पण व कठिन शब्दों के अर्थ भी दिए यह ग्रन्थ दरियागंज शास्त्र सभा के समस्त स्वाध्यायार्थी के सहयोग से प्रकाशित हो रहा है जो प्रशंसा के पात्र हैं। जिनवाणी के प्रचार-प्रसार में व्यय करना ही धन की सार्थकता है। यह ग्रन्थ सरल होने से जनसाधारण के लिए उपयोगी सिद्ध होगा। बाबूलाल जैन बी-१३७, विवेक विहार, दिल्ली-११००६५ दूरभाषः ६५३५१६३७

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