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हाय! हाय ॥
आपको यह इतना
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खेद
क्यों ? (१) हाय ! हाय !! देखो, संसार रूपी कुएँ में डूबते हुए भी ये जीव कैसे नाच रहे हैं-ऐसा संयमियों के मन में असंयमी जीवों को देखकर बड़ा संताप होता है||गाथा ९ ।। (२) हाय ! हाय !! मोह की यह भारी महिमा है कि 'संसारी जीव प्रयोजन के लोभ से पुत्रादि स्वजनों के मोह को तो ग्रहण करते हैं पर यथार्थ सुखकारी जिनधर्म को अंगीकार नहीं करते' ||१९ ।। (३) हाय ! हाय !! यह बड़ा अकार्य है कि प्रकट में कोई स्वामी नहीं है जिसके पास जाकर हम पुकार करें कि जिनवचन तो किस प्रकार के हैं, सुगुरु कैसे होते हैं और श्रावक किस प्रकार के हैं । ।३५ ।। (४) हाय ! हाय !! सर्प को देखकर जब लोग दूर भागते हैं तो उनको तो कोई भी कुछ नहीं कहता परन्तु जो कुगुरु रूपी सर्प का त्याग करता है उसे मूढजन दुष्ट कहते हैं ।।३६ ।।
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