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(५) हाय ! हाय !! यदि कोई रोटी का टुकड़ा भी माँगता है तो लोक में प्रवीणता रहित पागल कहलाता है और कुगुरु नाना प्रकार के परिग्रहों की याचना करता है तो भी उसमें प्रवीणपना ठहराया जाता है सो यह मोह की महिमा है ।। ३९ ।।
(६) हाय! हाय !! थोड़े से दिनों की मान बड़ाई के लिए अन्य मूर्खों के कहने से जिनसूत्र का उल्लंघन करके जो जीव उपदेश दे देते हैं उनको परभव में जो दुःख होंगे उन्हें यदि जानते हैं तो बस केवली भगवान ही जानते हैं । । ५६ ।।
(७) हाय ! हाय !! जो, जिस पापनवमी के दिन लाखों पशु-भैंसे आदि होमे जाते हैं उसे भी पूजते हैं और श्रावक कहलाते हैं वे वीतराग देव की निंदा कराते हैं कि देखो! जैनी भी ऐसा कार्य करते हैं ।। ७६ ।। (८) हाय ! हाय !! इस 'उपदेशरत्नमाला' जैसे प्रामाणिक और कल्याणकारी शास्त्रों की भी अत्यंत मान और मोह रूपी राजा से ठगाये गये कई अधम मिथ्यादृष्टि आचरण में निंदा करते हैं सो निंदा करने से जो नरकादि के दुःख होते हैं उनको वे नहीं गिनते । । ९७ ।। (९) हाय ! हाय !! अरहंत देव अथवा निर्ग्रथ गुरु के स्तवन से अभिमान विष को उपशमाने के स्थान पर उससे भी मान का पोषण करना सो यह दुश्चारित्र है । ।१४४ ।।
(१०) हाय ! हाय !! जो जीव जिनराज के आचार में प्रवर्तता है उसके आचार में लोकाचार नहीं मिलता तो मूढ़ जीव लोकाचार (लोकमूढ़ता) करते हुए अपने को जैनी कैसे कहते हैं ! || १४५।।
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