Book Title: Tulsi Prajna 2008 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 63
________________ दूरी मिटे। अद्वैतवाद का एक सिद्धान्त आचारांग सूत्र में प्रस्तुत है। अद्वैत का इतना महत्त्वपूर्ण प्रतिपादन किया कि सारी दूरी मिटा दी। कहा गया-किसको मार रहा है? किसको सता रहा है? जिसकी हिंसा करना चाहता है वह तुम ही तो हो। एक मारने वाला है और एक वह है, जो मारा जा रहा है। दूरी है तो आदमी दूसरे को मार सकता है। मैं अलग हूँ और वह अलग है। जब एकात्मकता हो गई, जिसको मारता है वह तू ही है-यह अभेद हो गया, तो दृष्टिकोण बदलेगा, चेतना का रूपान्तरण होगा। यह चेतना के रूपान्तरण का सूत्र है, रूपान्तरण की प्रक्रिया है। वह तू ही है' यह अभेद दृष्टिकोण अहिंसा की चेतना को जागृत करता है। भेद और अभेद-दोनों दृष्टियों का विकास जरूरी है। भेद का दृष्टिकोण है, इसलिए हर आदमी दूसरे आदमी को भिन्न मान रहा है। भिन्न मान रहा है, इसीलिए अन्याय भी है, शोषण भी है, तिरस्कार भी है, अपमान भी करता है, सब कुछ चलता है। हमारी अभेद की चेतना साथ में विकसित हो- जिसको तू सता रहा है वह तू ही है। जिसका अनिष्ट कर रहा है वह तू ही है। जिसका शोषण कर रहा है वह तू ही है। तेरा अपना शोषण हो रहा है। इस चेतना का विकास अहिंसा का आरम्भ बिन्दु है। इस प्रारम्भ बिन्दु को पकड़े बिना हम अहिंसा को स्वीकार करते हैं, अहिंसा की व्याख्या करते हैं किन्तु अहिंसा की पूरी बात समझ में नहीं आती और अहिंसा का जीवन में शायद पूरा अवतरण भी नहीं हो पाता। समता की बात, जो अभेद का सिद्धान्त प्रतिपादित करती है, अहिंसा की एक नई दिशा हमारे सामने आती है। हम बताते हैं कि किसी जीव को मत मारो, ऐसा मत करो। लोग सुनते हैं, बात समझ में आती है किन्तु मुझे लगता है कि आज समाज में जो अहिंसा की चेतना होनी चाहिए, वह जागृत नहीं है। वह इसीलिए नहीं है कि अभेद चेतना का विकास नहीं है। यदि अभेद चेतना का विकास व्यवस्थित रूप में किया जाये तो अहिंसा परिपक्व हो सकती है और अहिंसा निश्छिद्र हो सकती है। आज अहिंसा में छेद है। एक आदमी चींटी को तो नहीं मारना चाहता। चींटी मरती है तो कांपता है और मनुष्य का शोषण भी कर सकता है। यह छिद्र है अहिंसा का। ऐसा क्यों होता है? एक ओर तो करुणा है और दूसरी ओर निष्ठुरता है, यह अन्तराल क्यों? एक ही व्यक्ति में द्विरूपता है। इसका कारण है-अहिंसा की चेतना का अवतरण नहीं हुआ है, अहिंसा के सिद्धान्त का अवतरण हुआ है। अहिंसा के सिद्धान्त को मान लिया किन्तु अहिंसा की जो चेतना जागृत होनी चाहिए, वह नहीं हुई। ___ जहां सबके लिए समता है वहां कोई बचा नहीं। एक ही कोष्ठक में सबको समा दिया। वहां यह नहीं हो सकता कि एक आदमी के तो चांटा मार रहा है और एक आदमी के दुःख को मिटा रहा है, इसकी सहायता कर रहा है, सहयोग कर रहा है। यह अहिंसा का जो विकृत रूप सामने है, इसका कारण है हमारी भेदपरक दृष्टि। आचार्य भिक्षु ने इस छिद्र वाली बात पर कहा-छोटे पेड़ 58 - तुलसी प्रज्ञा अंक 141 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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