Book Title: Tulsi Prajna 2008 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ त्रिलोयपण्णत्ति के अध्याय 5 की गाथा 32 में जम्बूद्वीप का व्यास 1 लाख योजन 2 कहा गया है तथा वलयों का लवण समुद्र से चौड़ाई को स्वयंभूरमण समुद्र से क्रमशः प्रत्येक समय में दुगना दर्शाया गया है। 2 nth रिंग की चौड़ाई (समुद्र या द्वीप की) W n लवणसमुद्र वलयव्यास ( n=1 ) 2 लाख योजन धातकी द्वीप 4 लाख योजन जम्बूद्वीप (D) की चौड़ाई को W से दर्शाया जा सकता है। 72 = 2" दी गयी है। = भूमिका में 10 प्रकार के कल्पवृक्षों से मनुष्य की समस्त प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाया करती थी। उन कल्पवृक्षों में दीपांग एवं DW1 W2 W3 W4 ज्योतिर्राग नामक कल्पवृक्ष हुआ करते थे जो विद्युत् व प्रकाश के द्वारा अंधकार का नाश कर सदैव दिन का उजाला बनाये रखते थे। यह विज्ञान सम्मत तथ्य है कि पेड़-पौधों से बिजली बनायी जा सकती है। केला, केक्ट्स, गुलाब, अमरूद आदि पौधों व वृक्ष से बिजली बनाने की प्रेरणा डॉ. कोस्टा (1985) को जगदीशचन्द्र बसु से मिली थी। उन्होंने केक्ट्स व केला से 1.18 और 1.16 वोल्ट तथा 1.3 एम्पीयर विद्युत् धारा प्राप्त करने में सफलता पायी। वर्तमान् में हमें जो सूर्य व चन्द्रमा दिखाई दे रहे हैं, वे ज्योतिर्राग जाति के कल्पवृक्षों के प्रकाश के क्षीण हो जाने के कारण ये अपेक्षाकृत कम तीव्रता वाले सूर्य एवं चन्द्रमा दिखने लगे। यह वैज्ञानिक सत्य है । ' Jain Education International विज्ञान मानता है कि पृथ्वी के दो मूलभूत आधार स्तंभ पदार्थ एवं ऊर्जा है जो पृथ्वी पर निर्माण के लिये जिम्मेवार है व पदार्थ के मूल में एक सूक्ष्मकण की उपस्थिति है जो परमाणु है तब विज्ञान जैन विज्ञान के पुद्गल के समीप आ जाता है । यह पुद्गल व जीव का सम्बन्ध निरंतर क्रम में जिस लोक पर बना है, उसे जैनागम ठाणं सूत्र - ऐगे लोए कहा गया है अर्थात् लोक एक है, इस लोक का निर्धारण करते समय जैन विज्ञान कहता है कि अरूणोदक समुद्र में 42 हजार योजन (3 लाख 36 हजार मील) जाने पर जल की समस्थिति से एक प्रदेश का श्रेणी रूप ऊपर उठता मिलता है, यह समिति रूप श्रेणी जल ( अप्काय) और पुद्गलों का समूह है जिसे तमस्काय (Black Hole) कहते है। कृष्णवर्ण तमस्काय आधुनिक वैज्ञानिकों का Black Hole है। इसे खगोलविद् एक सिमटा तारा कहते हैं । निहारिकायें व आकाशगंगा में वे समूह है जिनके अंतरिक्ष में इधर-इधर गतिमान होने से विस्तार व सिकुड़न की घटनायें घटित होती हैं, जिससे तीव्र विस्फोट होता है, यह क्रिया निरन्तर आज भी चल रही है। इसे वर्तमान में विग बैंग थ्यौरी (Big Bang theory) कहा गया है। For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा अंक 141 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98