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इसी प्रकार जिस टेलीविजन को बेयर्ड की खोज माना जा रहा है, इसका वर्णन तत्त्वार्थसूत्र 5/28 में, भेदसंघाताभ्यामं चाक्षुसः' के द्वारा किया गया है जिसके अनुसार वायुमण्डल में व्यक्त भिन्न-भिन्न परमाणुओं के सम्मेल से और कुछ कणों के प्रत्करण से अदृश्य रूप चित्र देखे जा सकते हैं। गणित
जोड़, घटाना, गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल की विधियों की व्यवस्था आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, श्रीधर आचार्य, महावीर व भास्कराचार्य ने अपने ग्रन्थों में की थी। महावीर तो प्रथम भारतीय गणितज्ञ थे जिन्होंने लघुतम समापवर्त (LCM) की कल्पना की थी।
छेदापर्वतकानां जलब्धानां चाहती निरूद्ध स्यात्। हरछता निरूद्ध गुणीते हारांशगुणे समोहारः।। 4
इसके अलावा इन्होंने गणितसार संग्रह 3/60 में भिन्न सम्बन्ध अनेक सरल व जटिल उदाहरण भी दिए हैं। बीजगणित में क्रमचय एवं संचय तथा समीकरणों के हल ज्ञात करने की विधियों पर आचार्य महावीर का योगदान उल्लेखनीय है। श्रेणियों तथा वर्गसमीकरण में दोनों मूलों का ही महावीर ने परिकलन किया है (4/41) इसके अलावा महावीर ने उच्च घातांकों वाले समीकरण, प्रतिस्थापन की विधि, युगपत समीकरण, दीर्घवृत्त, क्षेत्रगणित, शंकु की छाया, दीपक की ऊंचाई इत्यादि जटिल गणितीय सूत्रों की व्याख्या भी नौवीं शताब्दी में ही कर दी थी। भगवतीसूत्र, अनुयोगद्वार, स्थानांगसूत्र, तिलोयपण्णत्ति, गणितसार संग्रह, त्रिलोकसार इत्यादि प्राचीन जैन ग्रंथ भी गणित के वृहद् ज्ञान से भरे पड़े हैं। प्राचीन जैन ग्रंथों में पाई के लिए 10 के समान भाग के प्रयुक्त होने के कारण 10 को एक जैनमान कहा जाता है। यतिवृषभ आचार्य द्वारा रचित त्रिलोयपण्णत्ति (दूसरी से सातवीं शताब्दी) तथा वीरसेनाचार्य (816 ए.डी.) षट्खण्डागम की धवला टीका में लघुगुणक (Logrithm) के बारे में प्रचुर रूप से वर्णन प्राप्त होता है। जीव विज्ञान
जैन ग्रंथों में छः द्रव्यों, सात तत्वों तथा नौ पदार्थो का विस्तृत वर्णन मिलता है, इनमें जीव की मुख्यता है।
क्लोनिंग तथा जेनेटिकल इंजीनियरिंग आदि कुछ ऐसे विषय हैं जो कि जैन ग्रंथों में वर्णित सिद्धांतों से मेल खाते हैं।
वैज्ञानिक दृष्टि के अनुसार पृथ्वी पर अनेक प्रकार के जीव पाये जाते हैं। सभी जीवों में जो समान लक्षण पाये जाते हैं, वे है- प्रजनन, वृद्धि, चयापचय, हलन-चलन, संवेदन, अनुकूलन लेकिन कुछ जीव ऐसे हैं जिनमें ये सब पूर्णतः नहीं पाये जाते। 76 -
तुलसी प्रज्ञा अंक 141
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