Book Title: Tulsi Prajna 2008 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 79
________________ प्रक्रिया को अत्यन्त सूक्ष्म रूप में अपने ग्रन्थों में प्रस्तुत किया है। अतः उमास्वामी को विश्व का प्रथम वैज्ञानिक कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। नागार्जुन ने अपने ग्रन्थ रस-रत्नाकर में चांदी से सोना तथा तांबे से सोना बनाने का उल्लेख किया है। भौतिक विज्ञान न्यूटन की गति सिद्धांत के अनुसार एक द्रव्य जो विराम अवस्था में है वह विराम अवस्था में ही रहेगा। एक द्रव्य जो सीधी रेखा में गतिशील है वह गतिशील रहेगा, जब तक उस द्रव्य की अवस्था में बाह्यबल न लगाया जाये। प्रवचनसार में आचार्य कुंदकुंददेव ने जीव की वैभाविक परिणति तथा वैभाविक गति के कारण का उल्लेख किया है “कम्मं णामसमक्खं समावमघआपणो सहावेश अभिभूय णरं तिरियं णेरइयं वा सुरं कुणदि।।227॥ इसी तरह आचार्य अमृतचंदसूरी के तत्त्वार्थसार के अनुसार जीव की संसार अवस्था विभिन्न गति होती है। इसका कारण कर्मजनित है, सम्पूर्ण कर्म से रहित जीव की केवल एक स्वाभाविक ऊर्ध्व गति ही होती है। आइंस्टीन ने विश्व को 1905 ईसवीं में सापेक्षता सिद्धांत के आधार पर वह सूत्र देने में सफलता पायी जिसमें परमाणु शक्ति की विशालता से सम्पूर्ण लोक को विचलित किया। वह सूत्र था। E = Mc (शक्तित्र मात्रा ग प्रकाश गतिः) आचार्य कुंदकुंद ने इसी अभिप्राय को गणितीय रूप में गोम्मटसार कर्मकाण्ड की गाथाओं में हजारों वर्ष पूर्व प्रतिपादित कर दिया था, जिसके अनुसार सिद्धाणंतिमभागं ... हवेसत्तं (4/5)।' ___ यदि हम कांच के बर्तन को जमीन पर गिरायेंगे तो कुछ टुकड़े दूर तक, कुछ नजदीक, कुछ पूर्व में, कुल मिलाकर हमें यह अस्त व्यस्त लगता है पर भौतिक विज्ञानी इसे निश्चित नियमानुसार व्यवस्थित ढंग से हुआ मानते हैं तथा स्वीकारते हैं कि प्रकृति में कारण-कार्य सिद्धांत लागू होता है यानि निश्चित कारणों से निश्चित कार्य होता है। क्वांटम थ्योरी जैन शास्त्रों में वर्णित स्यावाद की अवक्तव्यता भौतिक विज्ञान के क्वांटम सिद्धांत के द्वारा अच्छी तरह से पुष्ट होती है। आचार्य कुंदकुंद ने पंचास्तिकाय की 14वीं गाथा में स्याद्वाद के सात भंग लिपिबद्ध किये हैं। भंगों का अर्थ कथन होता है। इन सात प्रकार के कथनों में चार ऐसे हैं जो पदार्थ को किसी अपेक्षा से अकथनीय या अवर्णनीय यानि अवक्तव्य स्वीकार करते हैं। नोबेल पुरस्कार से अलंकृत (1965) फाइनमेन ने अपनी पुस्तक सिद्धांत की अकथनीयता या अवक्तव्यता को क्वांटम व्यवहार शीर्षक के अंतर्गत प्रयोग के द्वारा समझाया है। 74 - तुलसी प्रज्ञा अंक 141 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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