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व्रत के गुण से मगरमच्छों से भरे तालाब में फेंक दिये जाने पर प्रतिहार्य को प्राप्त हुआ अर्थात् देवों ने उसकी पूजा की। थोड़े समय के लिए पाला गया अहिंसा व्रत आत्मा का महान् उपकार करता है। यही कथा कुछ विस्तार एवं आंशिक परिवर्तन के साथ मुनि श्रीचन्दकृत कथाकोश में मिलती है, जिसमें यमपाल चाण्डाल चतुर्दशी को अहिंसा व्रती होकर राजा के आदेश का पालन नहीं करता है और राजा द्वारा सुंसुमार से भरे तालाब में फेंकने पर देव द्वारा उसकी रक्षा एवं राजा की पिटाई की तब यमपाल द्वारा राजा को छुड़ाया जाता है, राजा द्वारा पुत्री का विवाह एवं अर्द्धराज्य प्रदान करना, यह कथा हरिषेण के वृहत्कथा कोष में भी मिलती है। जिसमें अल्पकाल तक अहिंसा का पालन करने पर भी आत्मा का महान् उपकार करता है। जीवदया के रूप में मृगसेन धीवर की कथा आयी है जिसमें मृगसेन धीवर का क्षिप्रा नदी में मछली पकड़ने जाना, वहां मुनि के दर्शन होना एवं प्रथम जाल में फंसी मछली को छोड़ने की प्रतिज्ञा एवं एक ही मछली का पांच बार जाल में फंसना और छोड़ना पत्नी द्वारा घर से बाहर निकालने पर एक शून्य गृह में सांप द्वारा डसा जाना, गुणपाल सेठ की कन्या के रूप में जन्म लेना, आगे जाकर सोमदत्त के रूप में पैदा होना, पाँच बार भयंकर विपत्ति से बचना, क्योंकि धीवर के रूप में पांच बार एक ही मछली को बचाया गया। यह कथा हरिषेण के वृहत् कथाकोश में भी मिलती है। वर्द्धमान देशना में इस मछुआरे का नाम हरिबल है। कथा कुछ हेर-फेर के साथ होने पर भी अहिंसा के महत्त्व को ही प्रतिपादित करती है। यही कथा आख्यानक-मणिकोश में दामनक एवं सेठ सागरदत्त की कथा है जिसमें दामनक के पूर्वभव के रूप में मछुआरों की कथा है जिसमें तीन बार जाल को ढीला छोड़कर मछलियों को जाल से मुक्त करने की भावना है। इसी कारण तीन बार इसके सिर पर आयी मौत भी टल गयी। नयसेनकृत धर्मामृत में भी यह कथा विस्तार से मिलती है। ज्ञाताधर्मकथा के मेघकुमार के पूर्वभव के रूप में हाथी की कथा है जिसमें जंगल में आग लगने पर हाथी एवं अन्य प्राणियों का सुरक्षित स्थान पर पहुंचना, हाथी के पांव में खुजाल आने पर पांव को ऊपर उठाना, उठे हुए पांव के नीचे अनेक छोटे-छोटे प्राणियों का प्रवेश हो जाना, जीव दया एवं अहिंसा के परिणामस्वरूप हाथी का नीचे गिरना एवं मरकर मेघकुमार के रूप में पैदा होना। जीव हिंसा के दुष्परिणाम के रूप में सुदामा एवं छलक की कथा है जिसमें जीव हिंसा के दुष्परिणाम बताये गये हैं। छेलक ने भी श्रावक व्रत लेकर स्वर्ग प्राप्त किया। इनके अतिरिक्त सप्त व्यसन में मद्य, मधु, मांस, आखेट, आदि का त्याग भी अहिंसा व्रत में आते हैं। भगवती आराधना, मूलाचार, वसुनंदि श्रावकाचार आदि में उनका विस्तार से वर्णन है। ।
आखेट, मद्य, मांस व्यसन के दुष्परिणाम के रूप में सुमतिनाथचरित्र में एक सामदेव की कथा है जिसमें सामदेव अहिंसक था। वामदेव हिंसक के रूप में आखेट खेला करता था। अकाल की विभीषिका के समय उसने मजबूरन आखेट आदि हिंसा का कार्य प्रारम्भ किया परन्तु उसके बाद उसने मद्य, मांस, आखेट आदि नहीं करने का व्रत ले लिया लेकिन पत्नी की हठधर्मिता एवं
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तुलसी प्रज्ञा अंक 141
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