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क्लोनिंग चुनौती है। गोम्मटसार जीवकाण्ड, जीवतत्व प्रदीपिका टीका गाथा सं. 186 भगवती व्याख्या प्रज्ञप्ति के 21-22 व 23 वें शतक में भी वनस्पति की दृष्टि से बेहद महत्त्वपूर्ण जानकारियां तथा नाना प्रकार की वनस्पतियों का वर्णन है। जैन शास्त्रों में प्रतिपादित सिद्धांत वैज्ञानिक सिद्धांतों
और अनुसंधानों के समतुल्य हैं। अतः जैन शास्त्रों में विज्ञान के संदर्भ में हम जितना खोजेंगे उतना ही मिलेगा। जहां विज्ञान अस्थिर है वहीं जैन शास्त्र अकाट्य प्रमाण देता है। पृथ्वी की आयु के सम्बन्ध में विज्ञान परिवर्तन करता हुआ बढ़ता रहता है जबकि जैन शास्त्र कहते हैं कि पृथ्वी अनादि अनंत है। जैन ग्रंथ इस बात के प्रमाण हैं कि वैज्ञानिक तथ्यों की खोज आज से कई हजार वर्ष पहले कर ली गई थी।
यहां कहना समीचीन होगा कि अपनी निर्विकार और निस्पृह चिंतन प्रवृत्तियों के माध्यम से जैनाचार्यों द्वारा विकसित वैज्ञानिक अवधारणायें इनकी गंभीर दार्शनिक व्यवस्थाओं के कारण जटिल व दुरूह बनीरहीं। प्रस्तुत शोधपत्र में जैन शास्त्रों में वर्णित विज्ञान के सभी पक्षों पर प्रामाणिक व शोधपरक जानकारी उपलब्ध कराने का प्रयास किया गया है एवं यह भी स्वयंसिद्ध है कि जैसेजैसे विज्ञान का क्षेत्र बढ़ेगा, अध्यात्म की पर्ते और भी खुलती जायेंगी एवं जीव अजीव, धर्मअधर्म, आकाश-काल जैसे तत्त्वों पर आधुनिक वैज्ञानिक चिंतन की पृष्ठभूमि में गहन विचार किया जाना अपेक्षित होगा। जैन धर्म में आस्था रखने वाले बंधुओं को गर्व होना चाहिए कि आज विज्ञान का वृक्ष जैन शास्त्रों के सिद्धांतों की धरा पर ही पल्लवित और पुष्पित हो रहा है। संदर्भ ग्रंथ 1. षट्खण्डागम, चतुर्थ खण्ड - वेदना 8. प्रवचनसार 227 2. त्रिलोयपण्णत्ति, पांचवा अध्याय-गाथा 32 9. गोम्मटसार, कर्मकाण्ड गाथा 4/5 3. आदिपुराण, पर्व 3 - श्लोक 39 10. पंचास्तिकाय, गाथा 14 4. आदिपुराण पर्व 3 - श्लोक 56 11. क्षत्रचूड़ामणि, श्लोक 1/37, 38 5. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय 5, सूत्र 11 12. पद्मपुराण, पर्व 51 श्लोक 17 6. तत्त्वार्थराजवार्तिक, अध्याय 5
13. राजवार्तिक, भाग-2, 5/19 7. तत्त्वार्थसूत्र अध्याय 5, सूत्र 27 14. गणितसार संग्रह 3/56
52, पदमाकर कॉलोनी मकरोनिया, सागर - 470004
मध्यप्रदेश
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तुलसी प्रज्ञा अंक 141
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