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पारिवारिक कलह न हो, इसके कारण मांस खा लिया। व्रत तोड़ने के कारण वह व्याधि से ग्रस्त हो गया। उसकी पत्नी भी मरकर अगले जन्म में पूर्वकर्म के कारण व्याधिग्रस्त हो गयी । कर्मो की निर्जरा के बाद पुनः व्रत ग्रहण कर देव योनि को प्राप्त हुए। अतः मजबूरी से तोड़ा गया व्रत कितना अनर्थकारी हुआ, इस कथानक में बताया गया है। उपासकाध्ययन में मांस त्यागी चाण्डाल कथा आती है, जिसमें उसने मांस और शराब के पीने के बीच के समय अभिनन्दन गुरु से व्रत लिया कि इस अंतराल समय में मैं मद्य, मांस ग्रहण नहीं करूंगा। मांस तो नहीं ग्रहण किया किन्तु शराब पी ली जिससे बुद्धि कुण्ठित हो गयी और मरकर यक्षकुल में यक्ष हुआ । अतः थोड़े समय मांस नहीं खाने के कारण वह मरकर यक्षों में प्रधान हुआ। अगर दोनों छोड़ देता तो सद्गति मिल सकती थी जबकि इसके विपरीत मांस खाना तो दूर रहा, उसकी कल्पना मात्र से कितना दुष्परिणाम भोगना पड़ा, इसकी एक कथा उपासकाध्ययन में भी मिलती है।
कांदी नगरी में राजा सौरसेन ने मांस खाने का त्याग कर दिया है लेकिन वैद्यों, शैवों और वेदिकों के कहने से मांस खाने का विचार आया। किन्तु व्यस्तता के कारण समय ही नहीं मिलता था। उसका रसोईया उसकी आज्ञा से प्रतिदिन मांस पकाता था। एक बार सांप का मांस खाने के कारण मरकर समुद्र में महामत्स्य हुआ और इधर राजा मांस खाने की कल्पना मात्र से ही महामत्स्य हुआ आगे जाकर नरकगामी हुआ, इसलिए कहा है- 'स्वयंभूरमण समुद्र में महामत्स्य के कान में रहने वाला तन्दुल मत्स्य बुरे संकल्प से नरक में गया। इसलिए मद्य, मांस, मधु का सेवन करने से महान् हिंसा होती है। इसलिए व्यसनों के दुष्परिणाम के रूप में कहा है- 'जो मांस खाते हैं उनमें दया नहीं होती, जो शराब पीते हैं वे सच नहीं बोल सकते और जो मधु और उदुम्बर पत्तों का भक्षण करते हैं, उनमें रहम नहीं होता। अतः सप्त व्यसनों को भी अहिंसा व्रत में समाविष्ट किया जा सकता है जिसमें अनेक कथाएं हैं जिसे यहां विस्तार देना संभव नहीं है फिर भी पण्डित आशाधर ने अपने धर्मामृत में सप्तव्यसन के दुष्परिणाम के रूप में कथाओं के संकेत मात्र दिये हैं जैसे जुआँ खेलने से युधिष्ठिर को, मांसभक्षण से बकराज को, मद्यपान से यादवों को, वैश्या सेवन से चारूदत्त को, चोरी करने से शिवभूति ब्राह्मण को, शिकार खेलने से ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को भारी विपत्ति भोगनी पड़ी। अतः इसे त्यागना चाहिए।
इनके अतिरिक्त कुछ कथाएं अहिंसा, जीव दया, हिंसा को तटस्थ भाव देखने, हिंसा की कल्पना मात्र तथा रात्रि भोजन के दुष्परिणाम के रूप में यहां दी जा रही है।
इसके अतिरिक्त भी हिंसा के दुष्परिणाम के रूप में सुदर्शन सेठ और अर्जुनमाली की कथा है। अर्जुनमाली की पत्नी का अर्जुन के सामने ही उसका सामूहिक बलात्कार से क्रोध के कारण यक्ष ने अर्जुन के शरीर में प्रवेश किया और हजारों लोगों को मार दिया। सुदर्शन मुनि ने अपने तप प्रभाव से इनको शान्त किया। जीव-बलि के विरोध में भीम कुमार की कथा है जो अपने
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2008
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