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नमस्कार किया गया है। (नमोदसपुब्वियाणं, नमो चउद्दस पुब्वियाणं) इस आगम की परम्परा में जो साहित्य रचना हुयी, उसके चार भाग हैं____ 1. प्रथमानुयोग, 2. करणानुयोग, 3. चरणानुयोग, 4. द्रव्यानुयोग
इन चारों अनुयोगों में प्रथम अनुयोग में पुराणों, चरितों, कथाओं अर्थात् आख्यानात्मक ग्रन्थों का समावेश किया जाता है। करणानुयोग में ज्योतिष, गणित आदि विषयक ग्रन्थों, चरणानुयोग में मुनियों व गृहस्थों के पालने योग्य नियम विषयक ग्रन्थों, चरणानुयोग में मुनियों व गृहस्थों के पालने योग्य नियम विषयक ग्रन्थ, द्रव्यानुयोग में जीव-अजीव आदि तत्वों से संबंधित दार्शनिक कर्म सिद्धांत संबंधी ग्रन्थों का वर्णन है। भूगोल एवं खगोल विज्ञान
सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, दीपसागरप्रज्ञप्ति, त्रिलोकसार, त्रिलोकपण्णत्ति, वृहक्षेत्र, समास, त्रिलोकप्रकाश ऐसी रचनाएं हैं जिनसे विश्व के भूगोल व खगोल का ज्ञान होता है, जिनमें पृथ्वी के आकार, गति, चन्द्रमा की स्थिति, सूर्य का भ्रमण, द्वीप, समुद्र, क्षेत्र, पर्वत आदि विषयों का वैज्ञानिक वर्णन प्राप्त होता है। इन प्रज्ञप्तियों में विश्व को दो भागों में बांटा गया है- लोकाकाश एवं अलोकाकाश। आलोकाकाश विश्व का वह अनंत भाग है जहाँ आकाश के सिवाय और कोई जड़ या चेतन द्रव्य नहीं पाये जाते। केवल लोकाकाश ही विश्व का वह भाग है जिसमें जीव व पुद्गल तथा इनके गमनागमन में सहायक धर्म व अधर्म द्रव्य तथा द्रव्य परिवर्तन के निमित्त भूतकाल- ये पांच द्रव्य भी पाये जाते हैं। इस द्रव्यलोक के तीन विभाग हैं-ऊर्ध्व, मध्य एवं अधोलोक। मध्यलोक में हमारी वह पृथ्वी है जिस पर हम रहते हैं। यह पृथ्वी गोलाकार असंख्य द्वीप व सागरों में विभक्त है। इसके मध्य में एक लाख योजन विस्तार वाला जम्बूद्वीप है जिसे वलयाकार वेष्ठित किये हुये दो लाख योजन विस्तार वाला लवणसमुद्र है।
जम्बूद्वीप की स्थिति (मध्य लोक)
पुष्कर द्वीप कालोदका समुद्र धातकी द्वीप लवण समुद्र
2D4D8D- 16D जम्बू द्वीप
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2008
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