Book Title: Tulsi Prajna 2008 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 62
________________ के साथ हमारा सम्बन्ध नहीं है। स्रोत को हमें पकड़ना चाहिए। यदि स्रोत को नहीं पकड़ेंगे तो हमारी अहिंसा भी लड़खड़ाती-सी अहिंसा रहेगी और अहिंसा भी हिंसा की छाया में पलती रहेगी। इसका स्रोत, इसका आदि बिन्दु है समता। समता के साथ जुड़ी हुई अहिंसा है तो स्रोत में से पानी निकलता रहेगा, धारा बहती रहेगी। यदि हमारी अहिंसा समता से जुड़ी हुई नहीं है तो स्रोतविहीन धारा अल्प समय में सूख जायेगी। अहिंसा को हम समता का प्रायोगिक एवं व्यावहारिक रूप कह सकते हैं। एक है स्वगत और दूसरी है-पर के प्रति, दूसरे के प्रति। जहां किसी के प्रति है वहां दूसरा आ जायेगा। जहां स्वगत समता है वहां कोई दूसरा बीच में नहीं आयेगा। लाभ-अलाभ में मुझे समान रहना है। इसमें कोई दूसरा व्यक्ति हमारे सामने नहीं आयेगा। जहां हम प्रायोगिक रूप में, व्यावहारिक रूप में जायेंगे वहां दूसरा आ जायेगा। दूसरा कौन आये? इस पर विचार हुआ कि दूसरा कौन? किसके प्रति अहिंसा? कहा गया-प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा। पूरा प्राणी जगत आ गया। किसी मनुष्य के प्रति नहीं, किसी पशु-पक्षी के प्रति नहीं-यह अहिंसा का एक व्यापक प्रायोगिक रूप है। इसके लिए एक चेतना का विकास जरूरी है। मुझे लगता है कि चेतना का रूपान्तरण या विकास किये बिना कोरी बात है, वह शुष्क है और एक विकर्षण पैदा करने वाली है। एक सिद्धान्त दिया गया-चेतना को बदलने के लिए तुम सबको आत्मा के समान मानो और पूरी प्रजा के साथ यानि जीव जगत के साथ आत्मवत् व्यवहार करो। जैसा अपने साथ करते हो वैसा व्यवहार करो। यह आकर्षण का बिन्दु बन गया, व्यवहार का नियामक तत्त्व बन गया। मेरा व्यवहार कैसा होना चाहिए? आत्मवत् होना चाहिए। ..... ___जैनदर्शन द्वैतवादी है। चेतन और अचेतन-दोनों की स्वतंत्र सत्ता को स्वीकार करता है किन्तु साथ-साथ अद्वैतवादी भी है। जहां संग्रह नय का विचार है वहां अद्वैतवाद है। अद्वैतवाद की बड़ी उपयोगिता है। बहुत मूल्यवान सिद्धान्त है अद्वैतवाद। द्वैतवाद भी जरूरी है किन्तु साधना के क्षेत्र में अद्वैतवाद ज्यादा उपयोगी है। जब तक ध्याता और ध्येय अलग रहेगा, साधना की पूरी सिद्धि नहीं होगी। यह पार्थक्य बना रहेगा कि ध्याता अलग है, ध्येय अलग है। साधना करते-करते एक बिन्दु आयेगा जब ध्याता और ध्येय एक बन जायेगा। इस समय साधना की सिद्धि होती है, ध्यान की सिद्धि होती है। अद्वैत के बिना ध्यान की सिद्धि नहीं होती, अद्वैत के बिना एकात्मकता भी नहीं होती। अन्तराल में अनेक समस्याएं पैदा होती हैं। आपका अपना परिवार है। परिवार के साथ दूरी नहीं मानते। परिवार के साथ आप कभी अन्याय नहीं करते। मिलावट की वस्तु आप दूसरे को बेचते हैं लेकिन परिवार के लिए आप मिलावट की वस्तु नहीं लाते, शुद्ध चीज लाना चाहते हैं, क्योंकि इनके साथ दूरी नहीं है। जिनके साथ दूरी है उनको आप जहर भी खिलाना पसन्द करते हैं। दूरी जब तक रहेगी, समस्या का समाधान नहीं होगा। समस्या के समाधान के लिए जरूरी है कि तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2008 - - 57 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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