Book Title: Tulsi Prajna 2008 10
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 65
________________ है, जिसने समता की साधना की है। समता की साधना के बिना अहिंसा को जीवनगत नहीं बनाया जा सकता। अहिंसा और अपरिग्रह आत्मा अदृश्य है और शरीर दृश्य। शरीर के लिए आवश्यक है पदार्थ। पदार्थ की प्राप्ति के लिए आवश्यक है धन, परिग्रह, संग्रह। यह एक स्पष्ट आवश्यकता का वलय बनता है। धन के बिना पदार्थ की प्राप्ति नहीं। पदार्थ के बिना जीवन का संचालन नहीं। जीवन के बिना शरीर का कोई अर्थ नहीं। कैसे परिग्रह से मुक्ति पायी जाये? कठिन प्रश्न है। यह संभव भी नहीं है कि पदार्थ मुक्त कोई जी सके और बिना साधन के पदार्थ मिल जाये। यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें से निकला नहीं जा सकता। ___ सहज प्रश्न होता है कि परिग्रह को त्याज्य क्यों माना जाये। जब पदार्थ त्याज्य नहीं है, पदार्थ को छोड़ा नहीं जा सकता तो फिर परिग्रह को, संग्रह को कैसे छोड़ा जा सकता है? यदि परिग्रह केवल जीवन-यात्रा निर्वाह के लिए होता, आवश्यकता पूर्ति के लिए होता तो इस पर इतना दीर्घकालीन चिन्तन करने की आवश्यकता शायद नहीं होती। समस्या पैदा हो गयी- आवश्यकता बिल्कुल गौण हो गयी। यह पक्ष स्पष्ट नहीं रहा। सुविधावाद, उपभोग और विषय के प्रति आसक्ति, मूर्छा-ये समस्याएं पैदा हो गईं तब परिग्रह के विषय में चिन्तन करना आवश्यक हो गया। एक कारण और बना। जब अहिंसा पर चिन्तन किया तब एक जटिल समस्या सामने आई-हिंसा करना मनुष्य का स्वभाव है या किसी प्रयोजनवश करता है। यदि स्वभाव है तो फिर अहिंसा का सिद्धान्त बहुत ज्यादा सार्थक नहीं होगा। मनुष्य किसी प्रयोजनवश हिंसा करता है तो इस प्रयोजन की खोज होनी चाहिए। प्रयोजन पर जब ध्यान दिया गया तो एक स्पष्ट प्रत्यक्ष दर्शन हो गया जिसका महावीर वाणी में उल्लेख मिलता है-परिग्रह के लिए ही मनुष्य प्राणियों का वध करता है। आचारांग, सूत्र में जहां अहिंसा का चिन्तन शुरू हुआ है वहां बताया गया है-एक-एक अवयव के लिए मनुष्य हिंसा करता है। सींग के लिए हिंसा करता है, चमड़े के लिए हिंसा करता है, दांत के लिए हिंसा करता है, वसा के लिए हिंसा करता है। हिंसा के प्रयोजन बतलाये गये, इनमें जो सबसे बड़ा तत्त्व सामने उभर कर आता है वह है परिग्रह। परिग्रह हिंसा का मूल कारण है। अगर हम परिग्रह पर विचार न करें तो अहिंसा पर कोई विचार पूरा हो नहीं सकता, अधूरी बात रहेगी। अहिंसा और अपरिग्रह, हिंसा और परिग्रह में गहरा सम्बन्ध है। मानना चाहिए-हिंसा का कारण छिपा हुआ है और हिंसा हमारे सामने आती है। अहिंसा का कारण भी छिपा हुआ है और अहिंसा हमारे सामने आती है, इसीलिए अहिंसा को पहला स्थान मिला, क्योंकि प्रयोग में इसका ज्यादा दर्शन हमें होता है। किन्तु वास्तव में हिंसा से ज्यादा जटिल समस्या है परिग्रह की। अहिंसा से भी ज्यादा मूल्य है अपरिग्रह का। 60 0 तुलसी प्रज्ञा अंक 141 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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