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षड्जीवनिकाय के प्रति वैदिक दृष्टि
प्रो. दयानन्द भार्गव
मेरे अनन्यमित्र डॉ सागरमल जैन का तुलसी प्रज्ञा के 2008 के जुलाई-सितम्बर मास के अंक में षड्जीवनिकाय की अवधारणा का विश्लेषण करते हुए एक अत्यन्त गम्भीर लेख पढ़कर प्रसन्नता हुई। वनस्पति की जीवन्तता तो डॉ जगदीश चन्द्र बोस ने वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा सिद्ध कर दी। अतः इस सम्बन्ध में आगमोक्त अवधारणा पर कोई ऊहापोह नहीं रहा। त्रसकायों की जीवन्तता उनकी प्रतिक्रिया द्वारा प्रत्यक्ष गोचर है ही। प्रश्न रहता है पृथ्वी, अप्, अग्नि और वायु का। इस सन्दर्भ में पाठकों का ध्यान मैं The hidden message in water नामक एक जापानी वैज्ञानिक की Masaru Emoto नामक पुस्तक की ओर आकृष्ट करना चाहूँगा। जिसमें उन्होंने जल के कुछ चित्र दिये हैं। एक प्रयोग किया गया। कुल पात्रों में जल भर कर उस जल की प्रशंसा के वाक्य कहे गये और दूसरे पात्रों में जल भर कर निन्दात्मक वाक्यों से सम्बोधित किया गया। इन दोनों प्रकार के जल-पात्रों को फ्रिज में रख जल को जमा दिया गया। इस प्रकार जल के ऊपर कुछ बर्फ की हल्की सी परत आ गयी। उस परत पर कुछ आकृतियाँ बनीं। जिन जल-पात्रों में भरे जल की प्रशंसा की गयी थी उस जल के ऊपर बनी बर्फ की परत पर सुन्दर पुष्पाकार आकृतियाँ बन गयी। जिन जल पात्रों में भरे जल की निन्दा की गयी थी उस जल की परत पर अत्यन्त कुरूप भद्दी आकृतियाँ बन गयी। यह प्रयोग अनेक बार अनेक देशों में दोहराया गया और हर बार एक-सा ही परिणाम सामने आया। अभिप्राय यह हुआ कि जल हमारी प्रशंसा-निन्दा को सुनता-समझता है और तदनुकूल अपनी समझदारीभरी प्रतिक्रिया भी देता है। इसे ही लेखक ने 'जल में छिपा गुप्त सन्देश' नाम दिया है। प्रश्न होता है कि ऐसा जड़ पदार्थ तो कर नही सकता, तो क्या जल चेतन है?
उपर्युक्त पुस्तक की चार लाख से अधिक प्रतियाँ अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बिक चुकी हैं। यद्यपि मूल पुस्तक जापानी भाषा में है, अंग्रेजी में नहीं। क्या अब हमें यह नहीं मान लेना चाहिये कि जल जीवित है ? एक बात और विचारणीय है कि यह प्रयोग उसी
तुलसी प्रज्ञा अक्टूबर-दिसम्बर, 2008
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