Book Title: Tulsi Prajna 2008 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ जघन्येतर + समजघन्येतर जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर नहीं जघन्येतर + व्यधिक जघन्येतर है जघन्येतर + त्यादिअधिक जघन्येतर नहीं नहीं tectorate दिगम्बर ग्रन्थ षट्खण्डागम के अनुसार क्रमांक गुणांश सदृश विसदृश जघन्य + जघन्य जघन्य + एकाधिक जघन्येतर + समजघन्येतर 4. जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर जघन्येतर + व्यधिक जघन्येतर है जघनयेतर + त्र्यादिअधिक जघन्येतर नहीं तत्त्वार्थ सूत्र के अनुसार क्रमांक गुणांश सदृश विसदृश 1. जघन्य + जघन्य 2. जघन्य + एकाधिक 3. जघन्येतर + समजघन्येतर 4. जघन्येतर + एकाधिक जघन्येतर 5. जघन्येतर + यधिक जघन्येतर . है 6. जघन्येतर + व्यादिअधिक जघन्येतर नहीं 2. भाजन प्रत्ययिक बंध- भाजन में रखी हुई वस्तु का स्वरूप दीर्घकाल में बदल जाता है, वह भाजन प्रत्ययिक बंध है। जैसे पुरानी मदिरा अपने तरल रूप को छोड़कर गाढ़ी बन जाती है। जीर्ण गुड़ और जीर्ण तंदुल पिण्डीभूत हो जाते हैं। 3. परिणाम प्रत्ययिक- परमाणु स्कन्धों का बादल आदि अनेक रूपों में परिणमन होता है, वह परिणाम प्रत्ययिक बंध है। नही नहीं अटी नहीं - तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2008 - 49 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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