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भारत की संस्कृति बहुलवादी है। यहां प्रायः सभी धर्मों के अनुयायी रहते हैं। यदि राज्यव्यवस्था किसी एक धर्मानुसार संचालित होगी तो शेष धर्म के अनुयायियों के लिये कठिनाई हो जायेगी। अतः हमने सेक्यूलर राज्य की स्थापना की। यह सब उसी चिन्तन में से निकलता है जो चिन्तन लौकिक-व्यवस्था को लोकोत्तर व्यवस्था से मिलाने का विरोध करता है।
___ उपसंहार - आचार्य भिक्षु ने अहिंसा की सीमा निर्धारित की। सीमा निर्धारित करने का अर्थ है - अव्याप्ति, अतिव्याप्ति और असंभव दोषों से रहित परिभाषा देना। दर्शन का यही तो मुख्य प्रयोजन है। जब हम सीमा बांधते हैं तो अवधारणा सीमित हो जाती है किन्तु आचार्य महाप्रज्ञ कहते हैं कि
भले तुम्हारे पथ की काया, सीमित हो पर साफ सरल हो। भले तुम्हारे तरु की छाया, सीमित हो पर घन शीतल हो॥
एक वाक्य में कहना हो तो आचार्य भिक्षु ने आत्मधर्म और समाज धर्म की वर्णसंकरता को दूर किया ।इससे दोनों धर्मों का शुद्ध रूप प्रकट हो गया।आचार्य भिक्षु का अवदान सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। आचार्य भिक्षु समय से बहुत आगे की बात कर रहे थे। उनके समकालिक उन्हें नहीं समझ पाए। आज उन्हें समझने की आवश्यकता है,। आचार्य महाप्रज्ञ के शब्दों में -
तुम सब कुछ थे,किन्तु अवसरज्ञ नहीं थे। दो सौ वर्ष बाद करने के काम, तुमने पहले ही कर डाले।
सन्दर्भ
1. गुरुता को नमन, पृ. 14 2. नवपदारथ 12.3 3. नवपदारथ 12.5 4. अणुकम्पा 11.38 5. अणुकम्पा 4.18 6. अहिंसा और शांति, पृ. 55 7. उत्तराध्यय ,14.17
अणुकम्पा 12.5 9. दशवैकालिक 1.1 7. अहिंसा और शांति, पृ. 47
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तुलसी प्रज्ञा अंक 139
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