Book Title: Tulsi Prajna 2008 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 82
________________ जानकारी नहीं है। जैन साहित्य के इतिहास-ग्रन्थों में इनके विषय में संक्षिप्त विवरण उपलब्ध है, परन्तु इनके सम्पादन व प्रकाशन की सूचना नहीं है। इन काव्यों के प्रकाश में आने से आचार्य माणिक्यचन्द्र सूरि का महाकवित्व विशेष रूप से प्रकट हो सकेगा। काव्यप्रकाश-संकेत के प्रकाशित संस्करण हमारी जानकारी में माणिक्यचन्द्रसूरिकृत काव्यप्रकाश-संकेत' के अब तक तीन संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। प्रथम संस्करण आनन्दाश्रम ग्रन्थमाला पूना द्वारा 1921 ई. में प्रकाशित हुआ था। इसके सम्पादक महामहोपाध्याय वासुदेव शास्त्री अभ्ययर थे। द्वितीय संस्करण प्राच्यविद्या-संशोधनालय मैसूर विश्वविद्यालय मैसूर द्वारा 1922 ई. में प्रकाशित हुआ था। तीसरा संस्करण भी इसी संस्थान ने 1974 ई. में (प्रथम सम्पुट) व 1977 ई. में (द्वितीय सम्पुट) के रूप में प्रकाशित किया था। इस संस्करण में काव्यप्रकाश-संकेत' के साथ 'मधुमती' टीका भी छपी है। यही संस्करण अब तक प्रकाशित संस्करणों में उत्तम है, इसका सम्पादन न्यायव्याकरण-साहित्यालंकार-विद्वान् एन्. एस्. वेयटनाथाचार्य ने किया था। ___यद्यपि संकेत' के उपलब्ध संस्करणों में यह सर्वोत्तम है, फिर भी अनेक स्थलों पर इसमें भी पाठशोधन की आवश्यकता है। यह कार्य 'काव्यप्रकाश-संकेत' के उपलब्ध अन्य सभी हस्तलेखों के आधार पर किया जाना अपेक्षित है। इस प्रकार पुनः इसके एक समीक्षात्मक संस्करण की आवश्यकता है, जिसमें अब तक प्रकाशित संस्करणों की त्रुटियों का निराकरण हो। यदि सुयोग रहा तो हम यह कार्य सम्पन्न करना चाहते हैं। पूर्व निर्दिष्ट ये तीनों ही संस्करण वर्तमान में क्रयार्थ अनुपलब्ध हैं। काव्यप्रकाश-संकेत में उपलब्ध माणिक्यचन्द्र-रचित पद्यों की संख्या ‘संकेत' में माणिक्यचन्द्र सूरि के 50 पद्य हैं, जिनमें ‘वर्णच्युत' के उदाहरणभूत ‘सिद्धि' छन्द से वर्णच्युति पूर्वक बनने वाले दो पद्य भी सम्मिलित हैं। एक अन्य न्यायशालिनि भूपाले' यह पद्य पूज्यानाम्' करके संकेतकार ने उद्धृत किया है, उसे भी यहाँ सम्मिलित किया है। इस प्रकार यहाँ कुल 51 पद्य हो गए हैं। इनमें जो उदाहरण पद्य हैं, वे ‘स्वम् इदम्' इत्यादि सूचना के साथ ‘संकेत' में दिए हैं। इनके अतिरिक्त माणिक्यचन्द्र द्वारा रचित अन्य प्रसंगगत पद्य जो 'संकेत' में आए हैं, उनका भी यथावस्थित क्रम से संकलन कर इस शोधपत्र में विवरण दिया जा रहा है। उदाहरणेतर अन्य प्रसंगात पद्य इस प्रकार हैं - ग्रन्थारम्भ के 3 पद्य, रसनिष्पत्ति-विषयक मतों की समीक्षा के 3 पद्य, प्रायः प्रत्येक उल्लास के आरम्भ या अन्त में दिए जाने वाले 'संकेत' के प्रशंसापरक 11 पद्य तथा ग्रन्थान्त में गुरुपरम्परा-वर्णन के 9 पद्य व इसके अनन्तर काल-निर्देशक एक अन्तिम पद्य। इस प्रकार 76 -... तुलसी प्रज्ञा अंक 139 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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