Book Title: Tulsi Prajna 2008 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ श्री रसिकलाल छोटालाल परीख ने इसके द्वितीयखण्डगत एक परिशिष्ट ( अपेण्डिक्स - ए) में दोनों की समान पंक्तियों का संग्रह किया है। वहाँ उन्होंने सिद्ध किया है कि माणिक्यचन्द्र ने ही अपने से पूर्ववर्ती सोमेश्वर की टीका से सामग्री ग्रहण की है। स्वयं माणिक्यचन्द्र भी टीकारम्भ के द्वितीय श्लोक में अन्य ग्रन्थों से सामग्री लेने के इस तथ्य को बड़ी उदारता से स्पष्ट शब्दों में स्वीकार करते हैं । माणिक्यचन्द्र-परिचय जैन मुनि आचार्य माणिक्यचन्द्र सूरि गुजरात की विद्वत्परम्परा के एक महान् विद्वान् व उच्चकोटि के कवि थे। ये श्वेताम्बर जैन परम्परा के मुनि थे । धोलका गुजरात के राजा वीरधवल व उनके पुत्र वीसलदेव के प्रसिद्ध महामात्य वस्तुपाल से इनका निकट सम्पर्क व सख्यभाव था । महामात्य वस्तुपाल स्वयं एक महान् कवि योद्धा व मन्त्रधर थे । वे कवियों व विद्वानों के आश्रयदाता और प्रोत्साहनकर्ता के रूप में अतीव प्रसिद्ध थे । उदयप्रभ सूरि के शिष्य जिनभद्र ने संवत् 1290 वि0 में रचित अपनी 'प्रबन्धावली' में महामात्य वस्तुपाल व आचार्य माणिक्यचन्द्र सूरि के सम्पर्क का उल्लेख किया है। इससे माणिक्यचन्द्र सूरि का वस्तुपाल का समकालिक होना निश्चित है तथा इनकी रचनाएँ उक्त महामात्य के प्रोत्साहनकाल में ही लिखी गई थीं, यह भी स्पष्ट है। वस्तुपाल का निधन माघ कृष्णा 5 विक्रम संवत् 1296 में हुआ था। माणिक्यचन्द्र सूरि राजगच्छ के श्री सागरचन्द्र सूरि के शिष्य थे। इन्होंने श्री सागरचन्द्र सूरि के गुरु (अपने दादागुरु) श्री नेमिचन्द्र सूरि से भी विद्याध्ययन किया था। श्री नेमिचन्द्र जी गुरु श्री भरतेश्वर सूरि थे व उनके गुरु श्री शीलभद्र सूरि थे। यह गुरुपरम्परा संकेत के अन्त में स्वयं माणिक्यचन्द्र सूरि ने श्लोकबद्ध रूप में वर्णित की है। उक्त गुरुपरम्परा के वर्णन के अनन्तर माणिक्यचन्द्र ने एक श्लोक में संकेत के रचनाकाल का जो निर्देश किया है, उसके आधार पर समीक्षक विद्वान् इसका रचनाकाल 1266 विक्रम संवत् मानते हैं। कालनिर्देश-विषयक यह श्लोक इस लेख के अन्त में विवरण सहित दिया है। माणिक्यचन्द्र सूरि की अन्य रचनाएँ आचार्य माणिक्यचन्द्र सूरि प्रौढ शास्त्रीय वैदुष्य से विभूषित होने के साथ ही सहज कवित्वशक्ति के भी धनी थे । उनकी यह शक्ति काव्यप्रकाश में प्रस्तुत किए उनके स्वरचित उदाहरणों व अन्य पद्यों से पद पद पर लक्षित होती है। संकेत टीका में प्रस्तुत ये उदाहरण व उनके द्वारा रचे गए अन्य प्रसंगगत पद्य उनकी कवित्वशक्ति के उत्तम निदर्शन हैं। उक्त रचना के अतिरिक्त माणिक्यचन्द्र सूरि द्वारा रचित दो संस्कृत - महाकाव्य - 'पार्श्वनाथचरितम्' व 'शान्तिनाथचरितम्' उपलब्ध हैं। हमें अभी तक इन महाकाव्यों के सम्पादित संस्करण की तुलसी प्रज्ञा अप्रेल-जून, 2008 Jain Education International For Private & Personal Use Only 75 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100