Book Title: Tulsi Prajna 2008 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 70
________________ अहिंसा का निरपराध रूप- आचार्य भिक्षु ने अहिंसा की परिभाषा करते समय किसी अपवाद को स्वीकार नहीं किया। अपरिहार्यता की स्थिति हो तो भी हिंसा हिंसा है। बड़ों को बचाने के लिए छोटों की हिंसा तो सर्वथा अन्याय है। न्याय की स्थापना इसलिए की जाती है कि बड़ों से छोटों की रक्षा की जाये। इसलिए ही अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की गयी है। बहुसंख्यकों के हित के लिए अल्पसंख्यकों के हित की बलि नहीं दी जा सकती। आचार्य भिक्षु ने आज से दो शतक पूर्व घोषणा कर दी थी। राँ काँ ने मार घीगाँ ने पोस्याँ, ए तो बात दीसे घणी गेरी15 - न्याय की दृष्टि में सब समान हैं, छोटे बड़े का भेद न्याय के सामने नहीं है। अहिंसा के सम्मुख भी सबको जीने का अधिकार समान रूप से है। अहिंसा विधेयात्मक रूप- अब तक की चर्चा से यह लगेगा कि अहिंसा एक निषेधात्मक मूल्य है। अहिंसा शब्द निषेधपरक है , किन्तु अहिंसा का विधायक पक्ष भी है । रागद्वेषात्मक प्रवृत्ति न करना, प्राण बन्ध न करना निषेधात्मक अहिंसा है। सत् प्रवृत्ति करना, स्वाध्याय, अध्यात्म सेवा, उपदेश, ज्ञानचर्या आदि-आदि आत्महितकारी क्रिया करना विधेयात्मक अहिंसा है। प्रश्न यह उभरता है कि क्या किसी जरूरतमन्द को भौतिक पदार्थ उपलब्ध कराना भी अहिंसा का हिस्सा है या नहीं? इस प्रश्न के उत्तर में हमें विभज्यवाद से काम लेना होगा। जैसे किसी को कष्ट न देना मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है वैसे ही किसी की सहायता करना भी मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। किन्तु सहायता करने में दो प्रश्न मुख्य है - ___ 1. जिसकी सहायता की, क्या वह सहायता का पात्र था? 2. सहायता करने का साधन क्या शुद्ध था? एक चोर का पीछा पुलिस कर रही है। हमने चोर को अपने घर में छिपा लिया। चोर पुलिस की पकड़ से बच गया। यह चोर की सहायता तो हुई किन्तु क्या ऐसी सहायता करना उचित है? चोर की सहायता करना इसलिये अनुचित है कि चोर सहायता का पात्र नहीं है। हिंसक सहायता का अपात्र- यदि चोर सहायता का पात्र नहीं है तो क्या हिंसक सहायता का पात्र है? जैसा पाप चोरी करना है, वैसा पाप हिंसा करना है। यदि चोर सहायता का पात्र नहीं है तो हिंसक सहायता का पात्र कैसे हो जायेगा? पात्र का विचार करते समय अपराध की गुरुता लघुता पर ध्यान नहीं दिया जाता। चोर चोर है, उसने छोटी चोरी की हो या बड़ी चोरी। हिंसक हिंसक है वह छोटी हिंसा करता हो या बड़ी हिंसा। आचार्य भिक्षु ने परोपकार की एक सीमा बांधी, जो पाप से सर्वथा विरत नहीं हुआ उसकी सहायता करना भी स्वयं में एक पाप ही है । इविरत सेवायाँ भलो जाणीयाँ तीनूइ करणा पाप हो।17 जो पाप से सर्वथा विरत हो गया वही हमारी सहायता का पात्र है। परोपकार की यह पहली सीमा है। 64 - तुलसी प्रज्ञा अंक 139 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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