Book Title: Tulsi Prajna 1997 04
Author(s): Parmeshwar Solanki
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 9
________________ संध्याबधूं गृह्य करेण भानुः (नमि साधु कृत रुद्रट काव्यालंकार टीका में उद्धृत) सारांश यह है कि माहेश्वर-परम्परा से पृथक् जो व्याकरण पद्धति प्रचलन में थी वह जैन वाङ्मय में सुरक्षित हो सकती है। 'सद्दपाहुड़' की कथा सुनी जाती है। पूज्यपाद देवानंदी ने श्री दत्त, यशोभद्र, भूतबलि, प्रभाचन्द्र, सिद्धसेन, समन्तभद्र आदि को व्याकरणकर्ता के रूप में उल्लिखित किया है। और भी अनेकों जैन व्याकरण संबंधी संदर्भ मिलते हैं । अतः इस क्षेत्र में अभिनव शोध होना चाहिए । --परमेश्वर सोलंकी तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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