Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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ने विभीषण नामक एक पुत्र को जन्म दिया। तीनों भाइयों की ऊँचाई सोलह धनुष से अधिक थी। तीनों भाई बाल सुलभ क्रीड़ा करते हुए बाल्यकाल व्यतीत करने लगे । (श्लोक १६१-१६४)
प्रथम सगं समाप्त
द्वितीय सर्ग
एक दिन दसमुख और उसके भाइयों ने वैश्रवण को महासमृद्धशाली विमान में बैठकर जाते देखा । वह कौन है, यह पूछने पर उसकी मां बोली - ' वह मेरी बड़ी बहन कौशिकी का पुत्र है । उसके पिता का नाम विश्रवा है । समस्त विद्याधरों के अधीश्वर इन्द्र का वह मुख्य सैनिक है । इन्द्र ने तुम्हारे पितामह के अग्रज माली की हत्या कर राक्षस द्वीप सहित हमारी लङ्का नगरी भी उसे दे दी । तभी से तुम्हारे पिता लङ्कापुरी के उद्धार की इच्छा लिए यहीं रह रहे हैं । शत्रु के समर्थ होने पर ऐसा ही करना उचित है ।
( श्लोक १-५ )
'राक्षसपति भीमेन्द्र ने शत्रुओं का प्रतिकार करने के लिए हमारे पूर्वजों के पुत्र मेघवाहन को जो कि राक्षसवंश के आदि पुरुष थे लङ्का सहित राक्षस द्वीप पाताल लङ्का और राक्षसी विद्या प्रदान की थी । तुम्हारे पूर्व पुरुषों की राजधानी पर शत्रुओं का दखल हो जाने के कारण तभी से तुम्हारे पितामह, पिता प्राणहीन जड़ पदार्थ की भांति यहां निवास कर रहे हैं । वृष जैसे रक्षणहीन क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक विचरण करता है उसी भांति शत्रु वहां स्वच्छन्द विचरण कर रहे हैं । यह बात तुम्हारे पिता के हृदय को शल्य की तरह बींध रही है । वत्स, मैं अभागिन न जाने कब तुम्हें और तुम्हारे भाइयों को तुम्हारे पितामह के लङ्का के सिंहासन पर बैठकर राज्य करते देखूंगी । लङ्का को लूटने वालों को कब कारागार में कैदी रूप में देखकर पुत्रवतियों में स्वयं को अग्रगण्य समझूंगी । हे पुत्र, आकाश- कुसुम से अपने इस मनोरथ को हृदय में रखे यहां दिन व्यतीत कर रही हूं और उस मनोरथ की पूर्ति न होते देखकर हंसिनी जिस प्रकार मरुभूमि में मुरझाती है उसी प्रकार दिन पर दिन चिन्ता के भार से सूखती जा रही हूं ।' ( श्लोक ६-१२ )