Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 5
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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उन्हें लेकर पाताल लङ्का में चला गया। कौशिका के गर्भ से उत्पन्न वैश्रवा के पुत्र वैश्रवण को लङ्का का राज्य देकर इन्द्र अपनी राजधानी को लौट गया।
(श्लोक १२४ १३१) पाताल लङ्का में रहते समय सुमाली की प्रीतिमति नामक पत्नी के गर्भ से रत्नश्रवा नामक एक पुत्र हुआ। बड़ा होने पर वह विद्यासाधना के लिए पुष्पोद्यान में गया। वहाँ चित्र खिचित-सा स्थिर होकर अक्षमाला हाथ में लेकर नाक के अग्रभाग में दृष्टि रखकर वह जप करने लगा। रत्नश्रवा जब इस प्रकार जप कर रहा था तब खब सन्दर एक विद्याधर कन्या अपने पिता के आदेश से उसके सम्मुख खड़ी होकर बोलने लगी- 'मैं मानव सुन्दरी नामक महाविद्या हूं। तुमने मुझे प्राप्त कर लिया।' यह सुनकर विद्या सिद्ध हो गई समझकर रत्नश्रवा ने जपमाला फेंक दी; किन्तु आँख खोलते ही अपने सम्मुख एक विद्याधर कुमारी को खड़े देखकर बोला, 'तुम कौन हो? किसकी कन्या हो ? यहाँ क्यों आई हो ?' प्रत्युत्तर में वह बोली, 'अनेक कौतुकों का गृहरूप कौतुक मङ्गल नामक नगर में व्योमविन्दु नामक एक राजा है। कौशिका नामक उनकी बड़ी लड़की है, वह मेरी बहन है। यक्षपुर के वैश्रवा के साथ उसका विवाह हुआ है। उसके वैश्रवण नामक एक नीतिवान पुत्र है। वह अभी राजा इन्द्र की आज्ञा से लङ्का में राज्य कर रहा है। मेरा नाम है कैकसी। किसी नैमित्तिक के कहने से मेरे पिता ने मुझे आपको सम्प्रदान कर दिया है। इसीलिए मैं यहाँ आई हूं। सुमाली के पुत्र रत्नश्रवा ने यह सुनकर अपने आत्मीय स्वजनों को बुलवाया और कैकसी के साथ विवाह कर पुष्पोत्तर नामक नगर बसाकर, उसके साथ यौवन सख भोग करते हुए वहीं रहने लगा।
(श्लोक १३२-१४३) एक रात्रि कैकसी ने स्वप्न देखा-हस्तीकुम्भ को विदीर्ण करते हुए एक सिंह उसके मुख में प्रविष्ट हो गया। दूसरे दिन सुबह उसने अपने पति को स्वप्न बतलाया। रत्नश्रवा बोला- 'यह स्वप्न सूचित करता है कि तुम्हारे महाबलवान और अद्वितीय पुत्र होगा।' उस स्वप्न को देखने के पश्चात कैकसी प्रतिदिन चैत्यपूजन के लिए जाने लगी और उस महासारभूत गर्भ का पोषण करने लगी। गर्भ के प्रभाव से उसकी वाणी कर्कश हो गई, शरीर श्रम करने में समर्थ