Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 4
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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से उसने उसके साथ भी यौवन सुख भोग किया था । सचमुच ही इन्द्रिय दमन करना बहुत कठिन है । कालक्रम से कपिला ने भी कपिल नामक एक पुत्र को जन्म दिया । ( श्लोक २४-२९ )
ब्राह्मण धरणीजट यशोभद्रा के दोनों पुत्रों को वेद वेदांग निघण्टु आदि पढ़ाने लगा । कपिल महाप्रतिभा सम्पन्न था । अतः पिता के न पढ़ाने पर भी श्रवण मात्र से वेद वेदांग में पारंगत हो गया । प्रतिभा द्वारा भला क्या सम्भव नहीं है ? तदुपरान्त पितुगृह का परित्याग कर वह शिखा, उपवीत धारण कर पण्डित के वेश में ब्राह्मण श्रेष्ठ हूं प्रचार करता हुआ विदेश में विचरण करने लगा । विद्वानों के लिए विदेश क्या ? इस प्रकार विचरण करते हुए वह रत्नपुर नगर में आया और उसने मेघ की भाँति गर्जन कर स्वविद्या का परिचय दिया ।
( श्लोक ३०-३४) सत्यकि नामक
इस शहर में समस्त कलाविद नगर - शिक्षक एक ब्राह्मण रहते थे । उनके सभी शिष्य विलक्षण मेधा सम्पन्न थे । कपिल उनकी चतुष्पाठी में प्रतिदिन जाकर सत्यकि के प्रश्नों के उत्तर देता । उसकी मेधा से आश्चर्यचकित होकर सत्यकि ने कौतूहल वश वैदिक पाठों का गूढ़ार्थ जो कि ब्राह्मणों के सिवाय अन्य के लिए जानना सम्भव नहीं, पूछा । कपिल ने वह सब कण्ठस्थ सुना दिया । इससे सत्यकि ने सोचा कपिल वास्तव में कोई वेदज्ञ पण्डित है । तब सत्यकि ने राजा जैसे युवराज नियुक्त करते हैं वैसे ही कपिल को अपना स्थलवर्ती नियुक्त किया । गुणों का आदर कहां नहीं होता ? कपिल वहाँ प्रतिदिन शिष्यों को वेदाभ्यास कराने लगा और सत्यकि कर्ममुक्त होकर उससे पुत्रवत् स्नेह करने लगा । कपिल भी उसके प्रति पिता का-सा आदर भाव दिखाने लगा । इससे आनन्दित होकर सत्यकि सोचने लगा इसके लिए मैं और क्या कर सकता हूं । (श्लोक ३५-४१) सत्यकि की पत्नी जम्बूका ने एक दिन कहा - 'तुम यद्यपि इस विषय में सोच रहे हो फिर भी तुम्हें कहती हूं कि सत्यभामा नामक हमारे एक ही कन्या है जिसका रूप देवोपम है । वह सदाचार सम्पन्ना सुशीला सहनशील विनयी और गम्भीर है। तुम उसके लिए उपयुक्त वर की खोज क्यों नहीं करते ? जिसके घर कन्या, ऋण, शत्रुता और व्याधि है वह कैसे सो सकता है ?