Book Title: Tripurabharatistav
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 16
________________ तरह मल ज्ञान-क्रिया शक्ति का आवरण करता है । शक्ति : विश्व के हरेक पदार्थ में ज्ञान या क्रिया स्वरूप सामर्थ्य है। अग्नि में दाह करने का सामर्थ्य है । जल में शीतलता का सामर्थ्य है । अंधकार में स्वरूपाच्छादन का सामर्थ्य है । वस्तुगत सामर्थ्य 'शक्ति' है । हरेक शक्ति अपने आश्रयभूत द्रव्य का आधार लेकर प्रवृत्त होती है और अन्य पदार्थ पर अपनी असर छोड़ती है। यह असर अच्छी (Positive) भी हो सकती है और बूरी भी (Negative) । अच्छी या बूरी असर शक्ति के सदुपयोग या दुरूपयोग पर अवलंबित है । पाशगत रोधशक्ति पाश का आधार लेकर न केवल आत्मस्वरूप को आच्छादित करती है अपितु उसे अकार्य में प्रवृत्त भी करती है। हरेक आत्मा ज्ञानशक्ति और क्रिया शक्ति से सम्पन्न है । 'मल' आत्मा की शक्ति का अवरोधक है । ज्ञानशक्ति को दृक्शक्ति के नाम से पहेचाना जाता है । दृकशक्ति एक ही है फिर भी विषय के भेद से उसके पाँच औपचारिक भेद है ।२ (१) दर्शनशक्ति : इन्द्रिय जन्य ज्ञान । (२) श्रवणशक्ति : श्रोत्रेन्द्रियजन्य बोध, श्रवण यद्यपि इन्द्रियजन्य ही है फिर भी तत्त्वज्ञान का अभ्यर्हिततम कारण है, इस कारण से पृथक् गिना जाता है । (३) मननशक्ति : मनोजन्य ज्ञान । (४) विज्ञानशक्ति : शास्त्रो का अविपरीत, नि:संदिग्ध, सूत्र और अर्थ जन्य - बोध । १. एको ह्यनेकशक्तिर्दृकिक्रयाच्छादको मलः पुंसाम् । तुषतण्डुलवज्ज्ञेयः ताम्राश्रितकालिमावद्वा ॥ २. तत्र दृक्शक्तिरेकापि विषयभेदात् पञ्चधोपचर्यते दर्शनं श्रवणं मननं विज्ञानं सर्वज्ञत्वञ्चेति । एषा धीशक्तिः । 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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