Book Title: Tripurabharatistav
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 32
________________ जया रण में विजय (विवाद में जय) प्राप्त होता है । क्षेमंकरी : पशुभय का निवारण होता है । शबरी :- दुर्गम मार्ग में सहाय और मार्ग की प्राप्ति होती है । भूत-प्रेत-पिशाचादि कृत बाधा का निवारण होता है । महाभैरवी त्रिपुरा चित्त की भ्रान्ति टलती है, मानसिक स्वास्थ्य मिलता है । तारा : : :- जल के भय का निवारण होता है । साधारण आदमी को यह वर्णन लालच पैदा करेगा । इसीलिये व्याख्याकार श्री सोमतिलकसूरिजी ने इन सात ध्यातव्य स्वरूपो को गुप्त रखा है । तन्त्र मार्ग दुर्गम है । अधिकार प्राप्त किये विना सिर्फ अपनी मरजी से उसमें प्रवेश करने से बहुत बड़ी हानि हो सकती है । गुरु का मार्गदर्शन यहाँ नितान्त आवश्यक है । (पद्य - १८) भगवती त्रिपुरादेवी के २४ नाम है । इन २४ नाम के द्वारा बीजाक्षर मन्त्रो का उद्धार होता है । इन बीजाक्षरों से त्रिपुरादेवी का मूलमन्त्र प्रगट हुआ है । चौसठ योगिनी - योगिनीदोषविघातकयन्त्र इत्यादि मन्त्रविधान वृत्ति में है । (पद्य - १९) मन्त्र शास्त्र प्रसिद्ध सोलह स्वर और पैंतीस व्यंजन से त्रिपुरादेवी के वीस हजार से ज्यादा नाम निष्पन्न होते है । यह नाम आगमोक्त है और गुह्य है । (पद्य-२०) एँ क्लीँ इत्यादि बीजमन्त्रो का उद्धार विधि प्रस्तुत है । यह विधि भी गुरु परम्परा से ही ज्ञात होता है । व्याख्या में मन्त्रोद्धार के फल का अतिशयित वर्णन उद्धृत किया है । (पद्य - २१) अंतिम पद्य उपसंहार रूप है । इस पद्य में लघुत्व पद का श्लेष करके कवि ने अपना नाम व्यक्त किया है । १. तत्तत् कार्येषु साहाय्यदायिनीनां ध्येयरूप - वर्णायुध-समृद्धयो मुद्राश्च गुरुपरम्परातोऽवसेयाः । Jain Education International 31 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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