Book Title: Tripurabharatistav
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 40
________________ प्रवेश भगवती भारती की उपासना भारतवर्ष में प्राचीनकाल से चली आ रही है । माँ भारती के प्रसाद के बिना व्यक्ति कभी शक्तिसम्पन्न नही होता है । जैन एवं जैनेतर दोनों परंपरा में भगवती भारती की उपासना प्रबल रूप से चली आ रही है । जिनशासन की कोइ भी पोशाल ऐसी नहि जहाँ हंसवाहिनी का स्थान न हो । हर पोशाल में उनकी मूर्ति अथवा चित्र की स्थापना रहती थी । जैन आचार्य वृद्धवादिसूरिजी आचार्य बप्पभट्टसूरिजी आचार्य हेमचन्द्रसूरिजी, उपाध्याय यशोविजयजी, इन सब जैन साधकोने माँ भारती का साक्षात्कार कर अपूर्व प्रसाद वरदान पाये थे । , अजैन साधको में कवि कालीदास, महापंडित देवबोधि, महाकवि हर्ष प्रमुख है । जिनका प्रकाण्डपांडित्य, अपूर्व कवित्व मा भारती के ही प्रसाद का फल था । आचार्य बप्पभट्टिसूरि महाराज ने अपने सिद्धसारस्वत स्तोत्र में विद्वत्ता एवं वैभव, समृद्धि एवं सौन्दर्य सब माँ सरस्वती के ही प्रसाद से सहज मिल जाता है, ऐसी घोषणा की है। वास्तव में माँ शारदा के प्रसाद के बिना मुक्ति या भुक्ति हर क्षेत्र में निष्फलता ही प्राप्त होती है । यह त्रिपुराभारतीस्तव माँ के प्रसाद को पाने का साधनामार्ग बतानेवाला उत्कृष्ट महिमासंपन्न स्तोत्र है । प्राचीन चारणकवियों की आख्यायिका इस स्तोत्र के सर्जन का श्रेय चारणकवि लघु को देते है । जो राजस्थान अजारी का निवासी था । माँ सरस्वती के अनेक रूप है, अनेक यन्त्र है । जिसमें त्रिपुराभारती भी उनका एक रूप है । एक सारस्वती शक्ति अनेक रूप में विलसती है । शारदा का प्रमुख साधना स्थल कश्मीर एवं काशी है । जहाँ अनेक साधकोने साधना करके सिद्धि पाइ । त्रिपुराभारती का प्रमुख शक्तिपीठ दक्षिण राजस्थान 39 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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