Book Title: Tripurabharatistav
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 83
________________ ४२ श्रीत्रिपुराभारतीस्तवः क्षेमकरी स्वरूप का और कान्तारदुर्गे गिरौ = अतिभयंकर पर्वत आदि विषम स्थान में शबरीम् = शबरी स्वरूप का और भूतप्रेतपिशाचजृम्भकभये = भूत, प्रेत, पिशाच, आदि के भय में महाभैरवीम् = महाभैरवी स्वरूप का, और व्यामोहे = चित्तभ्रम होने में त्रिपुराम् = त्रिपुरा स्वरूप का तोयप्लवे = जल में डूब जाने आदि के भय में ताराम् = तारा स्वरूप का स्मृत्वा = एकाग्र चित्त से स्मरण करते हैं वे पुरुष विपदः = समग्र आपदाओं को तरन्ति = तिर जाते हैं । अर्थात् अकस्मात् ही कोई कष्ट उपस्थित हो जाने पर पूर्वोक्त श्रीभगवती के स्वरूपों का स्मरण करना चाहिये । क्योंकि समग्र कष्ट श्रीभगवती के अनुग्रह से तत्काल नष्ट हो जाते हैं ॥१७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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