Book Title: Tripurabharatistav
Author(s): Vairagyarativijay
Publisher: Pravachan Prakashan Puna

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Page 30
________________ सरोजहत्था कमले निसण्णा । वाएसिरी पुत्थयवग्ग हत्था सुहाय सा अम्ह सया पसत्था ॥ - आचार्यश्रीबप्पभट्टिसूरिजी रचित अनुभूतसिद्ध सारस्वत स्तोत्र में भगवती सरस्वती का वर्णन इस प्रकार है-भगवती का वाहन हंस है (कलमरालविहंगम वाहना,) वस्त्र उज्ज्वल है। (सितदुकुलविभूषणलेपना) चन्द्रमा समान मुख है (अमृतदीधिति बिंबसमाननां) कैतकी के पत्र समण विशाल नेत्र है । (विततकेतकीपत्रविलोचने) भगवती के हाथ में अमृत भरा हुआ कमण्डलु है (अमृतपूर्णकमण्डलुधारिणी), दूसरे हस्त में माला है (करसरोरुहखेलन चञ्चला तवविभाति परा जपमालिका) सरस्वती देवी का लक्षण चिह्न हंस ही है । (धवलपक्षविहङ्गम लाञ्छिते) इस प्रकार सरस्वती के अनेक स्वरूप है ।] (पद्य-८) श्वेतकमल के समान शुक्लवर्णीय भगवती के ध्यान से निरंकुश वक्तृत्वसिद्धि प्राप्त होती है । ध्याता, अपने मस्तक पर बिराजमान देवी अमृतवर्षा कर रही है और यह अमृत सहस्रार द्वार प्रवेश होकर सारे शरीर में फैल रहा है, ऐसा ध्यान करे । (पद्य-९) रक्तवर्णी मूर्ति के ध्यान से आकर्षण होता है। सिंदूर समान देवी का वर्ण और उसकी प्रभा से चारो और फैलते हुए रक्तरंग का ध्यान वशीकरण करता है । (पद्य-१०) स्वर्णवर्णीय और स्वर्णाभरण से विभूषित देवी का ध्यान करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है । ___ (पद्य-११) देवी के रौद्र स्वरूप का ध्यान चित्त की निर्मलता एवं सर्वसिद्धिमय भगवती स्वरूप का प्रदायक है । यह ध्यान 'आरभटी' नामक वीरसाश्रया वृत्ति से होता है । सत्यवान् एवं निर्भीक व्यक्ति ही यह ध्यान को सिद्ध कर सकता है । (पद्य-१२) इस पद्य में देवी का प्रभाव व्यक्त करने हेतु श्री वत्सराज 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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