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२५ श्री तत्त्वज्ञान तरंगिणी विधान छह द्रव्यों से भरा ठसाठस विश्व अनादि अनंत महान । पुद्गल जीव अधर्म धर्म आकाश काल छह द्रव्य प्रधान॥
आचार्य ज्ञानभूषण भट्टारक पूजन
स्थापना
छंद रोला श्री आचार्य ज्ञान भूषण की महिमा गाऊं । भट्टारक मुनि के चरणों में शीष झुकाऊं ॥ जिनशासन भट्टारक परम जिनेन्द्र हमारे । महावीर प्रभु गुण अनंत की महिमा धारे ॥ दिव्य ध्वनि जिनवर की सबके मन को भायी । सुमुनि ज्ञान भूषण ने उसको हृदय सजायी । जीवों के कल्याण हेतु जिनशास्त्र बनाया ॥ महिमामयी जिनागम का ही यश फैलाया । अतः आज पूजन करता हूँ महा विनय से ।
दो आशीर्वाद जुड़ जाऊँ आत्म निलय से ॥ . ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारक अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारक अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः । ॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारक अत्र सन्निहितो भव भव वषट् ।
अष्टक
छंद गीतिका सुविधि पूर्वक नीर लाऊँ जन्म मृत्यु जरा हरूँ | भावना भव नाशिनी भा आत्मा का हित करूं || तत्त्वज्ञान तरंगिणी का स्वाध्याय सदा करूं ।
चिद्रूप शुद्ध महान का ही ध्यान कर कल्मष हरूं || AIॐ ह्रीं श्री आचार्य ज्ञान भूषण भट्टारकाय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं नि. I KA