Book Title: Syadvadarahasya Part 2 Author(s): Yashovijay Upadhyay, Publisher: Divya Darshan Trust View full book textPage 3
________________ मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्डः २ । | प्रकाशकीय वक्तव्य | पाज मुमुक्षुव के पासिंगपन में जयलता (संस्कृत टीका) एतं रमणीया (हिन्दी व्याया) से सुशोभित स्पालादरहस्य (मध्यमपरिमाणवारगे) गन्धरता का दितीय खंड प्रस्तुत करते हुए हम आज अदितीरा आनंद की अनुभूति कर रहे हैं। प्रस्तुत विसर रखंड में वलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्रसूरीश्वरजी महाराज से निर्मित मुलखान्य स्वरूप वीतरारलोन प्रकरण के प्रस्टम प्रकाश को 5-10-८वी कारिकाःयों का महोपाध्याय श्रीमशोविजराजी तरवित (मध्यम) स्थानादरहस्य विवरण एवं उसकी जगलता तामक संस्कृत दीका और रमणीया नामक हिन्दी व्याख्या मुद्रित हैं। परिशिष्ट के समय में लघुपरिमाणवाला स्पासादरहस्य he भी इस पुस्तता में समाविष्ट है। जिस ग्रन्थ को प्रत्येक पंति व्ययाय की क्लिाया पारिभाषित पदावली से पास होने से अत्यंत ल-तुझेंप है ऐसे कठिनातम दार्शनिक ग्राथ की संस्तत एवं हिन्दी भाषा के माध्यम से रसपूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करने के लिये हम मुनिश्री यशोविजयजी का अभिवा करते हैं। प्रस्तुत महत्वपूर्ण सतथ के दितीय खंड की दोनों माख्याओं में श्रुटि रहने वा पाये तदर्थ लदिपरिकामतमति तपस्वी मनिराजश्री पुण्यरत्नविजयजी महाराज ने संशोधन के लिये पर्याय श्रम किया है। एतदर्थ हम करके भी जारी है। मुद्रण :आदि कार्य में कोई भी अति सा रह जाए उसके लिए व्याख्याकार गुनिटी को भी प्रफसिलंग आदि कार्य में काफि उद्यम किया है। फिर भी मद्राण आदि में छद्मस्थतामूलक कोई क्षति हागोचर हो तब उसका परिमार्जन करतो के लिये पतावर्ग से हमारी प्रार्थना है। पस्तुत सत्य के प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद अन्य समयावधि में सर्वांग सुन्दर कम्पोज-सेटिंगगुद्रण आदि कार्यसहित विद्वतीय खंड के प्रकाशन में श्री पा कोम्प्युटर्स वाले अजयभाई और विमलभाई ने भी अच्छा सक्रिय सौजारा दिखाया है। एतदर्थ वे भी अवश्य हमारे धपताद के पात्र हैं। पसाराध्यपाद वर्धमारतपोनिधि साविशारद सकलसंघहितचिंतक गच्छाधिपति आचार्यदेवेश स्व. श्रीमहातजा भुवनभानुसूरीश्वरजी महाराजा की पुषित प्रेरणा से प्रारब्ध हमारी संस्था को आज भी उनकी दिव्य कया से ऐसे शास्त्रीय प्रकाशनों का लाभ मिल रहा है। इस बात का हमें गौरव है और आगे भी ऐसे महत्वपूर्ण शास्त्र सयों के प्रकाशन का नाम हमारी संस्था को मिलता रहे -ऐसी हम प.पू.स्व. गुपतिश्री से याचा करते हैं। प्रान्त, अधिकृत जिज्ञासु समक्ष वाचकवर्ण टीकाब्दयसहित इस संघरत्न का सम्यग अध्ययन कर के पारमार्थित विश्वकायारागकर तत्चों के श्रवण-मन निदिध्यासन से मोक्षमार्ग की ओर प्रगति करेपही एक शुभेच्छा । लि. विस्यदर्शनट्रस्ट के ट्रस्टी कुमारपाल वि. शाह Reभाई चतुस्वास शाह. मर्यकभाई शाह आदि । परमपूज्य सिद्धांतदिवाकर गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद्विजय जयघोषसूरीश्वरजी म.सा. की पावन प्रेरणा से प्रस्तुत द्वितीय खंड का संपूर्ण आर्थिक सहयोग श्री लालबाग श्रेतांबर मूर्तिपूजक तपगच्छ जैन संघ - मुम्बई- ज्ञाननिधि की ओर से प्राप्त हुआ है । एतदर्थ हम उनके ऋणी है और उस संघ के ट्रस्टीओं को हार्दिक धन्यवाद देते हैं । अस्तु !Page Navigation
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