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स्वास्थ्य अधिकार
मन्त्र,यन्त्र और तन्त्र
मुनि प्रार्थना सागर
3. रसन कफ - इसका स्थान कण्ठ है, मधुरादि षट् रसों का ज्ञान कराता है। 4. स्नेहल कफ- इसका स्थान सिर है, यह चिकनाई देकर समस्त इन्द्रियों को तृप्त ___ करता है। 5. श्लेस्मक कफ - यह सब सन्धियों में रहता है, इसका काम सब सन्धियों को जोड़ना
(8) कफ प्रकोप के कारण दिन में ज्यादा सोना, शारीरिक श्रम न करने से,मीठा-खट्टा नमकीन रसों के अधिक खाने से तथा शीतल, चिकने, भारी गाढ़े और गरिष्ट पदार्थों के अति सेवन से और दूध, दही, तिल, खीर, खिचड़ी खाने से कफ कुपित होता है।
(9) वात प्रकोप के लक्षण सन्धि स्थान की शिथिलता, कम्प, शूल, गात्र शून्यता, हाथ-पैर भड़कना, नाड़ियों में खिंचाव, तीक्ष्ण दर्द, तोड़ने के समान दर्द, झटका रोमांस, रूक्षता, रक्त का श्याम वर्ण, शोष, जड़ना ,गात्र में गठोरत, अंगों में वायु का भरा रहना, प्रलाप, भ्रम, चक्कर, मूर्छा, मल संग्रह, मूत्रावरोध, शुक्रपतन, शरीर टेढ़ा हो जाना और मुँह का कषेय रहना तथा मुंह सूखना, पेट पर अफारा रहना, भूख प्यास कम ज्यादा लगना, थोड़ा भी सर्दी-जुकान होने पर सारा बदन जकड़ जाना व दर्द होना। यह सब वात प्रकृति के लक्षण जानना चाहिये।
(10) पित्त प्रकोप के लक्षण दाह, शरीर लाल-पीला हो जाना, शरीर में गर्मी बढ़ना, पसीना, शोष, अतृप्ति, खट्टी डकार, दुर्गन्ध, वमन, पतला दस्त, बैचेनी, बाहर के पदार्थ पीले दिखना, चमड़ी फटना, फोड़े-फुन्सियाँ होकर पकना, रक्तस्राव, पीली आँख, पीले दाँत, मल-मूल पीला, प्रलाप, भ्रम, मूर्छा, निद्रानाश, वीर्य पतला होना, स्वप्न में अग्रि दिखना और शीतल पदार्थों की इच्छा बनी रहना यह लक्षण होते हैं।
(11) कफ प्रकोप के लक्षण __ शरीर चिकना, सफेद शीतल और भारी होना, ठण्डी लगना, बुद्धि मन्दता, शक्ति की कमी होना, मुँह में मीठापन और चिकनापन, स्रोतो रोध, मुँह में लार गिरना, अरूचि, मन्दाग्नि, मल में चिकनापन, सफेद मल-मूत्र, सब वस्तुएँ सफेद दिखना, नाड़ी की मन्दगति-सूजन, खुजली, स्वप्न में जल की प्रतीति, निद्रावृद्धि, तंद्रा,मधुर और नमकीन पदार्थ खाने की इच्छा आलस्य और थकावट आदि लक्षण होते हैं।
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