Book Title: Swasthya Adhikar
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 100
________________ स्वास्थ्य अधिकार मंन्त्र,यन्त्र और तन्त्र मुनि प्रार्थना सागर कालसर्प दोष निवारण एवं मांगलिक दोष निवारण अनुष्ठान कालसर्प दोष क्या है ? जब राहु केतु के बीच सभी ग्रह आ जाते हैं, तो कालसर्प योग बनता है। वैसे राहु का जन्म नक्षत्र भरणी में हुआ, जिसका देवता काल है व केतु का जन्म नक्षत्र आश्लेषा में हुआ, जिसका देवता सर्प है, अत: इन दोनों देवताओं के मिलने से कालसर्प योग बनता है। कालसर्प योग जिसकी कुण्डली में होता है उसे अपने जीवन में काफी संघर्ष करना पड़ता है, इच्छित और प्राप्त होने वाली प्रगति में रुकावटें आती हैं, बहुत ही विलम्ब से यश प्राप्त होता है मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक और व्यापारिक दृष्टि से व्यक्ति परेशान रहता है, क्योंकि जातक के भाग्य को राहु-केतु अवरुद्ध करते हैं, जिसके कारण जातक की उन्नति नहीं होती। उसे कामकाज नहीं मिलता अथवा काम-काज मिल भी जाए तो उसमें अनेक अड़चने उपस्थित होती हैं। परिणामस्वरूप उसे अपनी जीवनचर्या चलाना भी मुश्किल हो जाती है। उसका विवाह नहीं होता अथवा विवाह के बाद संतान सुख नहीं मिलता। वैवाहिक जीवन में कटुता आकर अलगाव रहता है। कर्ज का बोझ उसके कंधों पर बना रहता है व अनेक प्रकार के दुःख भोगने पड़ते हैं। अतिशीघ्र मृत्यु भी प्राप्त हो सकती है। प्रायः समस्त परेशानियों से मुक्त होने के लिये हमसे सम्पर्क करें। हम प्रत्येक बुधवार को कालसर्प दोष निवारण व प्रत्येक मंगलवार को मंगली दोष निवारण अनुष्ठान करते हैं, जिस जातक की कुण्डली में प्रथम, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम एवं द्वादश भाव (स्थान) में मंगल ग्रह होता है उसे मंगली की संज्ञा दी जाती है। इन स्थानों में शनि होने से भी मंगल योग माना जाता है। वर की कुण्डली में मंगली योग कन्या के लिये तथा कन्या की कुण्डली में मंगली योग वर के लिये अनिष्ठ माना जाता है। मंगली दोष के कारण पुत्र/पुत्री का विवाह न होना (विवाह में विलम्ब होना) विवाह के बाद संतान उत्पत्ति का न होना अथवा विवाह होने के पश्चात् पति पत्नी के संबंधों का मधुर न होना। इस प्रकार के समस्त दोषों के निवारण के लिये आप इस अनुष्ठान में बैठकर समस्त विघ्न बाधाओं से मुक्त होकर पूर्ण सुखशांति एवं समृद्धि के साथ आनन्दमय जीवन जी सकते हैं। अनुष्ठान हेतु निर्देश१. पुरुष वर्ग अपने आन्तरिक वस्त्र एवं धोती दुपट्टा कोरे (नये) स्वयं लेकर आयें। २. महिला वर्ग लाल, गुलाबी कोरी साड़ी एवं अन्य वस्त्र स्वयं लेकर आवें। ३. पुरुष-महिला वर्ग अनुष्ठान में बैठने के पूर्व अपने शरीर के आभूषण आदि उतारकर आये अनुष्ठान के पश्चात शरीर पर धारित समस्त वस्तुओं एवं वस्त्रों का त्याग करना अनिवार्य है। ४. तांत्रिक उतारे की सामग्री भी यहीं पर उपलब्ध है। तान्त्रिक स्नान भी यहीं होगा। ५. अनुष्ठान के बाद आपको जो यन्त्र, मन्त्र व माला दी जाएगी। आपको उसी माला से उस मंत्र को उसी यंत्र के सामने बैठकर घर पर जाप करना होगा। सम्पर्क करें : अनुष्ठाचार्य- कपिल पाटनी मोबाइल : 09893821707, 09893119091, 09827505637, 613

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