Book Title: Swasthya Adhikar
Author(s): Prarthanasagar
Publisher: Prarthanasagar Foundation

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Page 11
________________ मंन्त्र, यन्त्र और तन्त्र आदि कारणों से कुपित होती है। - स्वास्थ्य अधिकार ( 5 ) पित्त यह एक द्रव्य पदार्थ है, गर्म चिकना, लघु, हल्का, तीक्ष्ण और दुर्गन्ध-युक्त, विष्ठा को नीचे बहाने वाला होता है। इसका रंग पीला व नीला होता है। सतोगुण प्रधान और अम्ल विपाक वाला होता है। इसके पाँच भेद होते हैं 1- पाचक, 2-रंजक, 3 – साधक, 4– आलोचक, 5-.. भ्राजक । 1. पाचक पित्त यह आमाशय और पक्वाशय में रहकर आहार को पचाता है, रस- दोष- मल-मूत्र को अलग-अलग करता है तथा शेष चार प्रकार के पित्तों के बल को बढ़ाता है। — मुनि प्रार्थना सागर 3. साधक पित्त 2. रंजक पित्त - यह यकृत और प्लीहा में रहकर रस का रूधिर बनाता है। इसका स्थान हृदय है, यह बुद्धि धारण और शक्ति को बढ़ाता है। इसका स्थान दोनों नेत्र होते हैं, इसका काम रूपादि ग्रहण करना 4. अलोचक पित्त है । - 5. भ्राजक पित्त यह सारे शरीर में और चमड़े में रहता है, इसका काम कान्तिरक, लेप, मालिश, स्नानादि कार्यों के द्रव्यों को सुखाना है। इनकी विकृति से जिस पित्त में विकार हो उसी के कार्य में बाधा पड़ती है, जैसे- पाचक पित्त बिगड़ने से अविपाक, रंजक बिगड़ने से रूधिर का कम बनना या ठीक न बनना इत्यादि । ( 6 ) पित्त प्रकोप के कारण क्रोध, शोक, भय, परिश्रम, उपवास, जले हुए अन्न खाना, मैथुन, चटपटा, खट्टा, लवण रसों का अति सेवन, तीक्ष्ण, उष्ण, दाहकारक पदार्थों का विशेष खाना, धूप में चलना, अति चलना और मद्य आदि मादक पदार्थों का सेवन करना पित्त प्रकोप कारक है। (7) कफ चिकना, शीतल, भारी, गाढ़ा श्वेत रंगवाला, मधुर गुणवाला लवण विपाकवाला है, इसमें तमोगुण अधिक रहता है। यह पाँच प्रकार का है, 1- क्लेदन, 2 - अवलम्बन, 3 – रसन, 4- स्नेहल, 5 - श्लेस्मक | 1. क्लेदन कफ यह आमाशय में रहता है। अन्न को गीला करता है और अपनी शक्ति से कफ के दूसरे स्थानों को भी जल कर्म द्वारा सहायता देता है । 2. अवलम्बन कफ-— इसका स्थान हृदय है। यह रस युक्त वीर्य से हृदय के भाग का अवलम्बन व भिकहड़ी को धारण करता है। 524

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