Book Title: Swarshastra Author(s): Vadilal Motilal Shah Publisher: Vadilal Motilal Shah View full book textPage 4
________________ आ कारणथो हुँ प्राणायाम संबंधी तने कहीश; कारण के श्वासोच्छवासना ( स्वरना ) ज्ञानथो मागस त्रिकालज्ञानी बने छे. आ स्वरशास्त्र गुप्तमां गुप्त रहस्य छे, कल्याणर्नु दीवनारुं छे, अने डाह्या पुरुषोना हाथमां रत्न समान छे. आ ज्ञान सूक्ष्ममा सूक्ष्म छे, छतां सहेलाइथी समजाय तेवु छे. तेथी सत्यमां श्रद्धा थाय छे. ते अज्ञानोना मनमा आश्चर्य उत्पन्न करे , अने समजदाराने श्रद्धाना पायारुप थइ पडे छे. जे मनुष्य शांत छ, शुद्ध छे, सद्गुणी छे, श्रद्धावान् छे, कृतज्ञी छे, • अने गुरुनो परम भक्त छे, तेवाने आ स्वरनुं ज्ञान आप, जोइए. जे मनुष्य दुराचारी छे, अपवित्र छे, क्रोधी छे, असत्यवादी छे, - व्यभिचारी छे अने जे विषयासक्तिथी पुरुषार्थहीन बनेलो छे, तेवाने आ ज्ञान आप न जोइए. ह शिष्य ! शरीरमा रहेलु ज्ञान सांभळ; जो ते बराबर समजवामां आवे तो तेथी सर्वज्ञपणुं थाय छे. स्वरमां वेद अने शास्त्रो समाइ जाय छे, मोटा गंधर्वो स्वरमां आवी वसेला छे, त्रण भुवन' पण स्वरमा समाय छे, स्वर ए परब्रह्मर्नु प्रतिबिंब छे. स्वरशास्त्रना ज्ञानविना जोशी, स्वामी विनाना घर जेवो, ज्ञान विना भाषण करनार जेवो अथवा तो माथा वगरना धड जेवो छे. जे माणसने नाडीओनु, प्राणनु, तत्वन अने सुषुम्णानुं ज्ञान छे, ते । मनुष्यने मोक्ष मेळवतुं स्हेलुं छे. ज्यारे स्वर उपर संपूर्ण सत्ता मळे छे, त्यारे ते मंगळकारी गणाय । छे. हे शिष्य ! स्वरशास्त्रनुं ज्ञानज मंगलसूचक छे * आ विश्वना केटलाक विभागो अने मूळ तत्वो स्वरथी उत्पन्न थया छे. स्वर ए महानशक्ति छे; तेनामा उत्पन्न करवानी अने नाश करवानी शक्ति रहेली छे. * आ वाक्यमां ज्ञान अने क्रियानो भेद बताववामां आव्यो छे. ज्ञान प्रमाणे किया थाय ता उत्तम छे; पण ते प्रमाणे न वाय तो पण ज्ञाननी बलिहारी छे. Scanned by CamScannerPage Navigation
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