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( ३७ ) बरावर प्रकट थइ शकतुं नथी, पण सूक्ष्मभुवनोमा ते विचारबळ घणुज छुटुं होवाने लीधे हद वगरनु होय छे. जेनी शक्तिओ खीलेली छे, देवो मनुष्य जो सूक्ष्मभुवन पर बीजा कोइ मनुष्य पर क्रोध करे तो ते मनुप्यने ते घणीवार गंभीर अथवा तो प्राणघातक नुकशान करे छे, एटले के मनु
नु मरण पण थाय छे. आपणा ज्ञानतंतुओ (Nerves) उपर आपणो एटलो बधो का होवो जोइए के के जेथी करीने सूक्ष्मभुवन उपर जो कोइ आपणे एकार कल्पित के भय भरेलो देखाव जोइए, तो तेथी डरीए नहि अने तेनी सामे पुरती हिम्मतथी टटार उभा रही शकीए. आ संबंधमां एन्टुं खुश थवा जे छ के ज्यारे कोइ पण गुरु अथवा महात्मा कोइ पण मनुष्यने सूक्ष्मभुवन पर प्रथम जागृत करे छे, स्यारे ते मनुष्यगां ते भुवनपरनां काम माटे अने सलामती माटे ते गुरु अथवा महात्मा पोसाने माथे जोखमदारी लेले. माटे जो नवा शिखाउमां एकला रही सूक्ष्मभुवनमां काम करवानी हिम्मत न आवी होय तो तैना सब करनारने तेलो सलामती माटे हमेशां तेनी पाछळ पाछळ भमg पडे, अ आम करवाने माटे ते गुरुने पोताना अमूल्य समयनो मोटो भोग आपको पडे, माटे ज्यारे चेलामा धणे अंशे हिम्मतनो गुण खोल्यो होय छे, त्यारेज तेने सूक्ष्मभुवन पर जगाउवामां आवे.छे. शिखाउनी हिम्मतनी खातरी करवाने माटे, अने तेने ते काममा लायक बनाघवाने माटे असलना समयनी माफक हालमां पण पृथ्वी, पाणी, हवा अने अलिनी कसोटीमोमाथी तेने पसार थर्बु पडे छे. बीजी रीते कहीए तो आ नवा शिखाउने शझोधी नहि पण खास अनुभवथी खात्री करवी पडे छे के अमितना सूक्ष्म शरीरने वाली शकशे नहि, पाणी तेने डुबाही शकशे नहि, पाणी तेने भींजवी शकशे नहि, अने पर्वत तेना मार्गमां विघ्नरुप थशे नहि. ज्यारे आपणे आ स्थूल शरीरमा होइए छीए, त्यारे आपणने एवं मानवाली मजबूत टेव पडी गयेली होय छे के अनिथी आपणे बळीए छीए, पाणीमा दुबी मरीए छोए, नकर पदार्थमाथी आपगाथी पसार थइ शकातुं नथी. अने आसपासनी खुल्ली हवानी वचमा आपणाथी अधर रहेवातुं नथी.आ विचार एटलो बधो हृदयमा सज्जड चेौटी गयेलो होय छे के सूक्ष्म शरीर आ सघळी अडचणोधी मुक्त छे, एवी खात्री तेमने महामहनते अने बहु वखते थाय छे. तेओने एकदम खात्री थती नथी के आ सूक्ष्म शरीर गमे एवा म्होटा पर्वतो के खडकोनी बच्चेथी के जमीनना नीचला भागमा अडचण वगर सहेलाइथो पसार थइ शके छे, ते शरीर
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