Book Title: Swarshastra
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah
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( १४ )
प्रथम तस्वनी संख्यानु ज्ञान; बीजुं स्वरनी साथै तत्वना संयोगनुं ज्ञान, श्रीजुं स्वरना चिह्ननुं ज्ञान; चोथुं तत्वना स्थाननुं ज्ञान; पचिमुं तत्वना रंगनुं ज्ञान; छटुं प्राणनुं ज्ञान; सातमुं तेभोना रसनुं ज्ञान; आठमुं तेभोना आंदोलनं ज्ञान.
सूर्य स्वर, चंद्र स्वर अने विषुवत् स्वर संबंधी आ आठ प्रकारनी बातमी सांभळ. हे शिष्य ! स्वर करतां उंचुं कोई तत्वज आ जगतमा नथी.
वखत जतां दृष्टिजोवानी शक्ति जागृत थाय त्यारे प्रयत्नथी जोवुं जोइए. योगीओ काळने छेतरवाने अर्थ उद्यम करे छे.*
मनुष्ये पोताना बे कान अंगुठा वडे, नसकोरां वचली आगळीओ वढे, म्हे! छेल्ली अने ते अगाउनी ( अनामिका ) वढे अने आंखो अंगुठानी जोडेनी (तर्जनी) वती बंध करवी.
आ स्थितिमां घणे भागे तत्वो धीमे धीमे पीळा, धोळा, राता, वादळी अने बीजी कोइ पण जातनो उपाधि वगरना बाघा डावा वाळ मालूम पडता जशे.
चाटलामा जोइ तेनापर आपणो श्वास फेंकवो; अने आ प्रमाणे आकार उपरथी तत्वोने ओळखता शिखवं जोइए.
चोरस आकारना, अर्ध चंद्राकार, त्रिकोणाकार, गोळाकार अने बाघा डावावाळा अनुक्रमे पांच तत्वोना आकार छे.
प्रथम पृथ्वी तत्व वचमां वहे छे; बीजुं जळ तत्व नीचे वहे छे; श्रीजुं अग्नि तत्व उंचु वहे छे; चोधुं वायु तत्व अमुक काटखुणे वहे छे; अने आकाश दरेक बेनी बच्चे वहे छे.
* आ शब्दो बहु विचार करवा लायक छे. कर्म प्रमाणे मनुध्यने सुख दुःख आवे छे. अने घखत जतां कर्मनो उदय थाय छे त्यारे, अमुक प्रकारना सुखना के दुःखना संजोगो हयातीमां आवे छे. पंण योगी तो योगाभ्यासथी शरीरनां तत्वो पर काबु मेळवे छे, अने रोगनां जे बीज प्रकट थर्ता अने नाश पामतां घणो वखत लागे ते बीजने एक क्षणम पकवीने काढी नाखे छे. जैन परिभाषामा आ क्रियाने ' उद्दीर्णा' कहे है.
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